आज का ब्लॉग मेरा मोहम्मद अली जिन्ना के ऊपर है,जो इस वक़्त बड़ी चर्चा में हैं :
सात दशक पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने हमारे देश को दो टुकड़ों में बाट दिया था मगर उनके नाम पर मतों का विभाजन अब भी जारी है, कभी उनकी तारिफ के बहाने तो कभी तस्वीर के।
ताजा मामला तस्वीर से जुड़ा है जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय में लगा हुआ है जिसे भाजापा,अखिल भरतीय विद्यार्थी परिषद वा हिन्दू संघटन हटाने की मांग कर रहे है।
जिन्ना पर ये ताजा विवाद एक पत्र के बाद गहराया था। वह पत्र जो अलीगढ़ के ही विधायक सतीश गौतम ने यूनिवर्सिटी के वाईस चासंलर तारिक मंसूर को लिखा था।
इस पत्र में उन्होंने लिखा, आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी औऱ नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वालों में जिन्ना का नाम भी था। बीजेपी विधायक ने कहा, ‘जिन्ना को आतंकी नहीं कहूंगा लेकिन राष्ट्रविरोधी चिंतन का व्यक्ति जरूर कहूंगा। आतंकी इसलिए नहीं कहूंगा क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन में जिन्ना भी एक सहभागी के रूप में थे। जिन्ना बाद में पाकिस्तान चले गए। उन्होंने भारत को कभी अपना राष्ट्र नहीं माना। पाकिस्तान परस्त लोगों को भारत की धरती पर सम्मान नहीं मिलना चाहिए।’
ये बताना ज़रूरी है बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने अपने पहले दो स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को ही मनाया था, लेकिन जिन्ना की मौत के बाद इसे 14 अगस्त को मनाया जाने लगा।
जिन्ना ने अपने इस भाषण के पहले हिस्से में उन सभी लोगों का आभार व्यक्त किया जिन्होंने देश बनाने में बड़ी क़ुर्बानियां दीं और कहा कि पाकिस्तान हमेशा उनका एहसानमंद रहेगा।
मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि भारत के मुसलमानों ने दुनिया को बता दिया है कि वे एक राष्ट्र हैं और उनकी मांग बिल्कुल जायज़ है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है.
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि हमें अपने व्यवहार और विचार से अल्पसंख्यकों को ये जता देना चाहिए कि जब तक वह वफादार नागरिकों की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगे, उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि हम पाकिस्तान की सीमाओं में रहने वाले आज़ादी पसंद कबायलियों को भरोसा दिलाते हैं कि पाकिस्तान उनकी हिफ़ाज़त करेगा।
जिन्ना ने कहा कि हम गरिमा से जीना चाहते हैं और हमारी ख़्वाहिश है कि दूसरे भी ऐसे ही जियें।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सपा के नव निर्वाचित सांसद ने कहा कि बीजेपी जिन्ना के नाम पर राजनीति कर रही है। सपा सांसद निषाद ने कहा, “भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर राजनीतिकरण कर रही है, और यह बेहद निंदाजनक है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की तरह, जिन्ना ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया।” उन्होंने कहा कि, “हिंदुओं की तरह, मुस्लिमों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और उनका योगदान अच्छी तरह से प्रलेखित है। बीजेपी ऐसे मुद्दों को उठाकर जाति और धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित कर रही है। जब हम शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बारे में बात करते हैं, तो हमें अशफाकुल्ला खान और वीर अब्दुल हमीद भी याद करते हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान गवा दी। बीजेपी चाहती है कि लोग इस कारण में इनका योगदान भूल जाएं।”ऐसा करना गलत है बीजेपी हमेशा देश मे धर्म को लेके राजनीति करती है।
देश में सबसे पहले जिन्ना को जिस नेता ने मान्यता दी और उनकी कब्र पर फूल चढ़ाया, वे भारतीय जनता पार्टी के नेता और तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी थे इसलिये पहले उनसे सवाल पूछा जाना चाहिये।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लगे जिन्ना की तस्वीर को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। यूनिवर्सिटी का माहौल खराब होते देख प्रसाशन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैंपस की सारी इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। इसे फिलहाल 5 मई तक बंद करने के आदेश दिए गए हैं।
जहाँ तक जिन्ना की तस्वीर का सवाल है तो पहली बात यह है कि जो मुसलमान जिन्ना को अपना नेता मानते थे वे 1947 में ही भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। फिर आज मुसलमानों से पाकिस्तान और जिन्ना का हिसाब माँगना गलत है।
इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि सावरकर के चेले जिन्ना के बहाने हिंदू-मुस्लिम के बँटवारे का खेल खेलना चाहते हैं। सावरकर और जिन्ना, दोनों नास्तिक थे और दोनों ने भारत के बँटवारे का समर्थन किया था। आज फिर सावरकर को मानने वाले लोग 1938 में लगी तस्वीर के नाम पर एएमयू और देश को बाँटना चाहते हैं। जिन्ना की तस्वीर एएमयू और आडवाणी का दिल, इन दोनों जगहों से हटनी चाहिए।
वैसे सावरकर की तस्वीर संसद के सेंट्रल हॉल में क्यों लगाई गई?
भाजपा ने जनता को डर दिखाया पाकिस्तान का और निशाना साधा अपने ही देश के कैंपसों पर। जेएनयू, बीएचयू, एचसीयू आदि पर हो रहे हमलों के बाद अब एएमयू के साथियों को लगातार परेशान करने की कोशिशें की जा रही हैं। अगर उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे कैंपसों को चुप करा देंगे वो बहुत ग़लत सोच रहे हैं।
बात अगर केवल जिन्ना की तस्वीर की होती तो लोग उसे उठा कर कूड़ेदान में डाल देते किसी को आपत्ति नहीं होती मगर बात सिर्फ तस्वीर की नही है।
वैसे जिन्ना का तस्वीर हटाने के मांग करने वाले वही लोग है जो गांधी की हत्या करने वाली विचारधारा के नायक सावरकर को पूजता है और उसकी तस्वीर लोकतंत्र के मंदिर में लगाता है। गांधी के हत्यारों की पूजा करता है।
हम लोग न तो जिन्ना को स्वीकार सकते हैं और ना ही सावरकर को ये देश गांधी, पटेल,नेहरू,बोस,भगत,आजाद, कलाम और असफाकउल्लाह खान जैसे वीरो का है।