9 मई को कर्नाटक के बिदर में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘जब शहीद भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और वीर सावरकर देश की आजादी के लिए जेल में लड़ रहे थे. क्या कोई कांग्रेस नेता उनसे मिलने गया था?’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन, कांग्रेस नेता जेल में बंद भ्रष्ट लोगों से मिलते हैं.’ जाहिर है कि प्रधानमंत्री का इशारा दिल्ली स्थित एम्स में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और लालू प्रसाद यादव की मुलाकात की ओर था.
ये दस्तावेजों में दर्ज है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाहौर जेल में 8 अगस्त, 1929 को भगत सिंह और उनके साथियों से मुलाकात की थी, जो प्रशासन के दुर्व्यवहार के खिलाफ जेल में भूख हड़ताल कर रहे थे. लाहौर से प्रकाशित ट्रिब्यून अखबार के सायंकालीन संस्करण के पहले पन्ने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की मुलाकात की खबर प्रकाशित की है. खबर की हेडलाइन, “Pt. Jawaharlal Interviews Hunger Strikes” है. खबर की तस्वीर यहां देखी जा सकती है, जिसे पढ़ा जा सकता है. खबर कहती है, “पंडित जवाहर लाल नेहरू एमएलसी डॉक्टर गोपीचंद के साथ लाहौर जेल गए और बोर्स्टल जेल में लाहौर षड्यंत्र केस में भूख हड़ताल कर रहे सत्याग्रहियों से मुलाकात की और उनका साक्षात्कार किया.” पंडित जवाहर लाल पहले सेंट्रल जेल गए जहां उन्होंने सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त से मुलाकात की और भूख हड़ताल के बारे में उनसे बातचीत की.” इस बातचीत के बारे में नेहरू ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है और ये बताया है कि वे भगत सिंह से किस तरह प्रभावित थे. नेहरू ने लिखा, ‘मैं उस समय लाहौर में था, जब भूख हड़ताल को एक महीने हो गए थे. मुझे जेल में बंद कैदियों से मुलाकात की परमिशन दी गई और मैंने इसका लाभ उठाया.’ उन्होंने लिखा, “मैंने पहली बार भगत सिंह, जतींद्र दास और अन्य लोगों को पहली बार देखा.” उन्होंने कहा, ‘निश्चित रूप से क्रांतिकारियों और गांधी के सिद्धांतों को मानने वाले कांग्रेस नेताओं के बीच मतभेद थे. लेकिन वे एक दूसरे के प्रति बहुत सम्मान रखते थे. खासतौर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस का क्रांतिकारी बहुत सम्मान करते थे।
प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनाव जीतना बड़ी बात नहीं है। वे जितने चुनाव जीत चुके हैं या जीता चुके हैं यह रिकार्ड भी लंबे समय तक रहेगा। कर्नाटक की जीत कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आज प्रधानमंत्री मोदी को अपनी हार देखनी चाहिए। वे किस तरह अपने भाषणों में हारते जा रहे हैं। आपको यह हार चुनावी नतीजों में नहीं दिखेगी। वहां दिखेगी जहां उनके भाषणों का झूठ पकड़ा जा रहा होता है। उनके बोले गए तथ्यों की जांच हो रही होती है। इतिहास की दहलीज़ पर खड़े होकर झूठ के सहारे प्रधानमंत्री इतिहास का मज़ाक उड़ा रहे हैं। इतिहास उनके इस दुस्साहस को नोट कर रहा है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी के लिए नेहरू चुनौती बन गए हैं। उन्होंने खुद नेहरू को चुनौती मान लिया है। वे लगातार नेहरू को खंडित करते रहते हैं। उनके समर्थकों की सेना व्हाट्स अप नाम की झूठी यूनिवर्सिटी में नेहरू को लेकर लगातार झूठ फैला रही है। नेहरू के सामने झूठ से गढ़ा गया एक नेहरू खड़ा किया जा रहा है। अब लड़ाई मोदी और नेहरू की नहीं रह गई है। अब लड़ाई हो गई है असली नेहरू और झूठ से गढ़े गए नेहरू की। आप जानते हैं इस लड़ाई में जीत असली नेहरू की होगी। नेहरू से लड़ते लड़ते प्रधानमंत्री मोदी के चारों तरफ नेहरू का भूत खड़ा हो गया। नेहरू का अपना इतिहास है। वो किताबों को जला देने और तीन मूर्ति भवन के ढहा देने से नहीं मिटेगा। यह ग़लती खुद मोदी कर रहे हैं। नेहरू नेहरू करते करते वे चारों तरफ नेहरू को खड़ा कर रहे हैं। मोदी के आस-पास अब नेहरू दिखाई देने लगे हैं। उनके समर्थक भी कुछ दिन में नेहरू के विशेषज्ञ हो जाएंगे, मोदी के नहीं। भले ही उनके पास झूठ से गढ़ा गया नेहरू होगा मगर होगा तो नेहरू ही। भगत सिंह और नेहरू को लेकर प्रधानमंत्री ने जो ग़लत बोला है, वो ग़लत नहीं बल्कि झूठ है। नेहरू और फील्ड मार्शल करियप्पा, जनरल थिम्मैया को लेकर जो ग़लत बोला है वो भी झूठ था। कई लोग इस ग़लतफ़हमी में रहते हैं कि प्रधानमंत्री की रिसर्च टीम की ग़लती है। आप ग़ौर से उनके बयानों को देखिए। जब आप एक शब्दों के साथ पूरे बयान को देखेंगे तो उसमें एक डिज़ाइन दिखेगा। भगत सिंह वाले बयान में ही सबसे पहले वे खुद को अलग करते हैं। कहते हैं कि उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है और फिर अगले वाक्यों में विश्वास के साथ यह कहते हुए सवालों के अंदाज़ में बात रखते हैं कि उस वक्त जब भगत सिंह जेल में थे तब कोई कांग्रेसी नेता नहीं मिलने गया। अगर आप गुजरात चुनावों में मणिशंकर अय्यर के घर हुए बैठक पर उनके बयान को इसी तरह देखेंगे तो एक डिज़ाइन नज़र आएगा। प्रधानमंत्री के चुनावी भाषणों को सुनकर लगता है कि नेहरू का यही योगदान है कि उन्होंने कभी बोस का, कभी पटेल का तो कभी भगत सिंह का अपमान किया। वे आज़ादी की लड़ाई में नहीं थे, वे कुछ नेताओं को अपमानित करने के लिए लड़ रहे थे। क्या नेहरू इन लोगों का अपमान करते हुए ब्रिटिश हुकूमत की जेलों में 9 साल रहे थे? इन नेताओं के बीच वैचारिक दूरी, अंतर्विरोध और अलग अलग रास्ते पर चलने की धुन को हम कब तक अपमान के फ्रेम में देखेंगे। इस हिसाब से तो उस दौर में हर कोई एक दूसरे का अपमान ही कर रहा था। राष्ट्रीय आंदोलन की यही खूबी थी कि अलग अलग विचारों वाले एक से एक कद्दावर नेता थे। ये खूबी गांधी की थी। उनके बनाए दौर की थी जिसके कारण कांग्रेस और कांग्रेस से बाहर नेताओं से भरा आकाश दिखाई देता था। गांधी को भी यह अवसर उनसे पहले के नेताओं और समाज सुधारकों ने उपलब्ध कराया था। मोदी के ही शब्दों में यह भगत सिंह का भी अपमान है कि उनकी सारी कुर्बानी को नेहरू के लिए रचे गए एक झूठ से जोड़ा जा रहा है। नेहरु तो भगत सिंह से मिलने गए थे , इसके सबूत हैं . अखबार की कतरनें हैं . किताबें हैं . जेल के पन्ने हैं लेकिन संघ से संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार भगत सिंह से मिलने गए थे क्या ? 1925 में संघ की स्थापना हो गई . 1929-1930 में भगत सिंह दो साल तक लाहौर जेल में रहे . हो सकता है इन दो सालों संघ प्रमुख भगत सिंह से कई बार मिले हों । किसी के पास ऐसी कोई जानकारी है तो बताएं कि कितनी बार और कब -कब संघ प्रमुख हेडगेवार उनसे मिलने गए थे ? संघ प्रमुख की तरफ से भगत सिंह को बचाने के लिए किन -किन शहरों में आंदोलन किया गया था ? लाहौर जेल से लौटने के बाद हेडगेवार ने भगत सिंह और उनके साथियों को बचाने के लिए कहां शाखा लगाई थी ? आपके हिसाब से हो सकता है कि लाहौर सेंट्रल जेल में नेहरु और भगत सिंह की मुलाकात का इतिहास लिखने वाले सारे इतिहासकार ‘वामपंथी’ हों और उन्होंने इतिहास के साथ छेड़छाड़ की हो . हो सकता है कि नेहरु ने भी अपनी किताब में भगत सिंह के से अपनी मुलाकात के बारे में झूठ लिख दिया हो लेकिन 1929 के ट्रिब्यून अखबार के रिपोर्टर ने तो सच ही लिखा होगा। लाहौर जेल में बंद भगत सिंह और उनके साथियों के प्रति कांग्रेस नेताओं की बेरुखी की इमोशनल कथा बांचने से पहले मोदीजी इस बार ये कहकर डिस्क्लेमर लगा दिया था कि ‘अगर आपमें से किसी को जानकारी है तो जरुर बताना. मुझे नहीं है .मैंने जितना इतिहास पढ़ा है , मेरे ध्यान में नहीं आया. फिर भी आपमें से किसी को जानकारी हो तो मैं सुधार करने के लिए तैयार हूं। अब जिन्हें लाहौर जेल में बंद वीर भगत सिंह और उनके साथियों से नेहरु की मुलाकात की जानकारी थी , उन्होंने तो इतिहास और अखबार के पन्ने निकालकर खिदमत में पेश कर दिया है . नेहरु की लिखी किताब में भगत सिंह और उनके साथियों से मुलाकात का विस्तार से जिक्र तो है ही , उस समय के अखबार में खबर भी है . तो क्या पीएम मोदी अब अपने इतिहास ज्ञान को सुधारेंगे ? कहेंगे कि मैंने गलत इतिहास पढ़ लिया ?