
मोदीजी और उनकी सरकार द्वारा बोले गये झूठ पर एक मोटी किताब लिखी जा सकती है,मोदीजी का एक 15 अगस्त का भाषण बेहद प्रसिद्ध है और वो उनके बोले गये झूठो के कारण। लाल किले से जो भाषण दिया उसमें अर्थव्यवस्था पर, किसानों की जीवनस्थिति पर ग़लत तथ्य दिये गये थे; गाँवों की बिजली के बारे में जो तथ्य दिये गये थे, वे भी ग़लत थे |
मोदी सरकार आज जिन योजनाओं की उपलब्धियों के बल पर तारीफ बटोर रही है वो उनकी नहीं बल्कि पिछली सरकार की है बहरहाल मोदी जी के जिन झूठो के बारे में, पहला झूठ: “किसानों का 99 प्रतिशत गन्ना भुगतान हो चुका है।”
दूसरा झूठ: 70 साल बाद बिजली पहुंचाने का दावा!
तीसरा जूठ: 350 रुपये में मिलने वाला LED बल्ब आज 50 रुपये में।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नाम पर असम में संघ द्वारा लड़कियों की तस्करी का मामला हो या किसानों को आगे बढ़ाने की बात हो, नरेन्द्र मोदी ने अपने हर वायदे के उलट हर तरफ़ बर्बादी का जो मंज़र खड़ा किया है, उसे ढँकने के लिए झूठों का अम्बार खड़ा किया गया है और पूँजीपतियों के ग़ुलाम मीडिया के ज़रिए इन झूठों के धुुआँधार प्रचार ने लोगों को ठहरकर इस पर कभी सोचने का मौक़़ा ही नहीं दिया है।
लेकिन यह काम क्रान्तिकारी ताक़तों का है कि इस फासीवादी प्रचार का पर्दाफ़ाश किया जाये। मोदी सरकार द्वारा देशभक्ति के नाम पर जेएनयू और हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों पर पुलिसिया लाठीचार्ज और मुक़दमे दर्ज करवाये गये।
नोटबन्दी के दौर में वायदा किया कि काला धन ख़त्म होगा और आतंकवाद रुक जायेगा परन्तु यह भी कोरा झूठ निकला। मोदी जी ने बोला कि 31 मार्च तक आरबीआई की खिड़कियों पर पुराना नोट बदला जायेगा और 31 दिसम्बर तक बैंकों और पोस्ट ऑफि़सों में बदला जायेगा परन्तु सभी जानते हैं कि मोदी ने कितनी बेशर्मी से इस बात को भुला िदया और दर्जनों बार नये नियम घोषित किये जिसने आम ग़रीब जनता को भयंकर परेशानी में धकेल दिया।
प्रधानमन्त्री जी की डिग्री में भी गड़बड़ी है, जिस वजह से मोदी जी ने इस पर भी मौन धारण कर रखा।
अब नरेन्द्र मोदी की प्रचार नीतियों को देखा जाये तो इनमें भयंकर समानता दिखाई देती है। सिर्फ़ रेडियो की जगह सोशल मीडिया, टीवी, रेडियो लगभग हर तकनीकी माध्यम से मोदी के नाम को लोगों तक पहुँचाया गया है। ट्विटर पर संघ के आईटी सेल द्वारा प्रचार व ज़ी न्यूज़, इण्डिया टीवी, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी सरीखे मुख्य टीवी चैनलों द्वारा प्रचार गोएबल्स का फासीवादी एजेण्डा ही दिखाता है। वहीं यहूदियों की जगह मुस्लिम आबादी के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा कभी खुला तो कभी छिपा प्रचार उनके ख़िलाफ़ लगातार समाज में उनकी छवि गढ़ता है।
मोदी के प्रचार में कुछ फ़िल्में भी बनी लेकिन वे बेहद खराब थीं। हर मीटिंग या सभा को आयोजित करने से पहले तमाम राज्यों से लोगों को बुलाया जाता है, सभा को बड़े से बड़ा करने की कोशिश की जाती है।औऱ साथ ही हर बार झूट की दुनिया बना देते है कांग्रेस द्वारा पिछले 60 सालों में जो प्रतीक गढ़े गये थे, उन्हें ज़रूर मोदी ने 5 साल में चुनौती दी है और असल में मोदी सरकार का मक़सद भी यही है।
हिटलर और गोएबल्स की तरह प्रधानमन्त्री मोदी भी ज़रूर शीशे के आगे अपने भाषण तैयार करते हैं बल्कि बाकायदा भाषणों की पुरानी वीडियो देखकर एक-एक शब्द पर ज़ोर और चेहरे के भाव की तैयारी करते होंगे। ऐसे कि एक झूठ को सौ बार दोहराने पर वह सच में तब्दील हो जाता है।मोदी और संघ लगातार इसी छवि को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद प्रधानमन्त्री मोदी झूठ बोलते रहेंगे, क्योंकि वे झूठ बोलने की मशीन हैं और झूठ बोले बिना उनका काम नहीं चल सकता है।