“ये मोदी है, लेने के देने पड़ जायेंगे” के बाजारू बोल से भाषाई गुंडागर्दी तक गिर चुके प्रधान मंत्री की जुबान।

सीमा पार करोगे तो ये मोदी है, लेने के देने पड़ जायेंगे”

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी बीते 6 मई को हुबली कर्नाटक की एक सभा मे बोलते हुए प्रधानमंत्री ने, सड़क छाप भाषा में किसी छुटभैय्ये मोहल्लावीर की तरह कांग्रेसी नेताओं को, जितनी बेशर्मी से धमकाया था उतनी ही बेशर्मी के साथ उसका वीडियो, “इसको कहते हैं दमदार प्रधानमंत्री” के कैप्शन के साथ उनके अंधसमर्थको ने सोशल मीडिया में फैलाया हुआ है!

“ये मोदी है, लेने के देने पड़ जायेंगे” के बाजारू बोल से भाषाई गुंडागर्दी तक गिर चुके प्रधान मंत्री की जुबान से, विरोधियों के लिए, शाब्दिक कूड़ा करकट झड़ना कोई नयी बात नहीं है! उनके स्कूली सनद में दर्ज श्रेणी और अंक की जानकारी देशवासियों को भले आज तक न हो पाई हो मगर व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के सबसे मेधावी ये साहेबान और इतिहास ज्ञान, सांस्कृतिक बोध और दर्शन सिद्धान्त की वैचारिक उल्टियां करने वाले माननीय महोदय का सीना झूठ बोलने के मामले में यकीनन 56 इंच है!

2014 के बहुउच्चारित और बहुप्रचारित मगर अब आडवाणी जी की तरह देश की ” धरोहर” हो चुके “अच्छे दिन” के विश्वप्रसिद्ध “जुमला ब्राण्ड” कारपेट पर चल कर, संसद की सीढ़ियों में दण्डवत होने का हाईवोल्टेज अभिनय करने वाले इस कथित प्रधान सेवक के पास असंसदीय और अमर्यादित शब्दों के मायाजाल के अलावा कभी कुछ ठोस, दिखाने को रहा ही नहीं है!

पिछले 70 साल के कांग्रेसी हिसाब किताब में अपना कार्यकाल भी घुसा देने वाले, देश के पहले अद्वितीय और अभूतपूर्व प्रधानमंत्री, अपने हर पब्लिक उचाव में अपने कार्यकाल की उपलब्धियां बताने की बजाय “फांसी चढा देना”, “गोली मार देना” , “मेरी जान को खतरा” जैसे भावनात्मक वाक्यों के सहारे लोगों के दिलों में दाखिल होने का देशी जुगाड़ तलाशते रहते है!
पिछले चार साल से कारपोरेटी ऋण से उऋण हो रही इस सरकार के मुखिया की नीति और कार्यक्रमों की कोई चर्चा सरकार पोषित मीडिया में तो होने से रही, हां एक दो मीडिया संस्थान जिन्हें अक्सर कांग्रेसी या वामपंथी कह कर खारिज कर दिया जाता है, वहां सरकार पर थोड़े बहुत साल जरूर उठते रहते है मगर वो भी अपनी अधिकतर ऊर्जा मुख्य सेवक के झूठ और जुमलों को काउंटर करने में ही जाया करते है! इधर वामी इंटेलेक्चुएल्स का एजेंडा कुछ ऐसा होता है कि उनके मुद्दों से मोदी सरकार घिरने की बजाय और ज्यादा आक्रमक हो जाती है!

कुछ तटस्थ इंटेलेक्चुएल्स को छोड़ दिया जाय तो इस सरकार के कार्यकाल का पिछली सरकार के कार्यों के साथ कोई तुलनात्मक और आलोचनात्मक विश्लेषण कभी होता ही नहीं है! ऐसे में स्वयं प्रधानमंत्री के लिए विरोधियों की कमर से नीचे वार करने का भरपूर अवसर होता है मगर वो ऐसे वार करने में भी शब्द और लहजा ऐसा चुनते है कि जैसे गली कोई गुंडा तैश में आकर देख लेने की धमकी दे रहा हो! कुल मिला कर देश की राजनैतिक फ़िज़ा कुछ ऐसी है कि देश का मुखिया, जानबूझ कर भाषायी ओछरन देश पर उड़ेल देता है जिसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का बड़ा हिस्सा चाटने लगता है और कुछ हिस्सा उसकी बदबू पर डियोडरेंट स्प्रे करने लगता है।

282 सांसदों के लावलश्कर के साथ पूर्ण बहुमत हासिल सरकार के माननीय मुखिया और सत्ताधारी पार्टी के अति सुविख्यात अध्यक्ष, पब्लिक मीटिंग के दौरान धमकी भरे शब्दों की ऐसी खट्टी डकारें मारते है जैसे वो सरकार नहीं मुम्बई का कोई आपराधिक गैंग चला रहे हो! अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान बन्द कमरें में अपने पिठ्ठू पत्रकारों के तयशुदा सवालों का जवाब देने वाले 56 इंची सीने में इतना भी कलेजा नहीं है कि वो एक खुली प्रेस कांफ्रेंस करके जनता से सीधे सम्वाद कर सकें!

सरकार की उपलब्धियां दिखाने की बजाय अपने शब्दों और भाषा के ओछेपन से राजनैतिक विरोधियों को आतंकित करने की कोशिश करने वाले प्रधानमंत्री महोदय की जुबान से झड़ने वाले शब्द जिन्हें सुहाते है, वो उनकी चरण वंदना बेशक करें मगर चाल, चरित्र और चेहरा की आड़ में घटिया शब्दावली और भाषा के शोर के अलावा उनकी कोई उपलब्धि हो तो मुझे भी अवगत करावें ताकि उनके वरिष्ठ पीएम इन वेटिंग लौहपुरुष के और उनके वरिष्ठ पार्टी साथियों के श्राप से इस गुजराती जोड़ी को मुक्ति दिलाने के लिए कोई श्लोक या मंत्र पढ़ने का हौसला मुझे भी मिल सके! बाकी इतिहास को तो माननीय प्रधानमंत्री के क्रांतिकारी जुमलों और शब्दगुंडई को सम्हाल के रखना ही है!

✍ शिल्पी सिंह

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