राहुल गाँधी का लड़ाई झूठ और नफरत से है

राहुल तुम्हारा मुक़ाबला झूठो से है……..

जिस पार्टी ने 49 साल के शासन काल में देश को एक भी मुस्लिम प्रधानमंत्री नहीं दिया हो, देश के वर्तमान प्रधानमंत्री बड़ी सफाई के साथ उसे मुसलमानों की पार्टी करार देते हुए ये ऐलान कर देते हैं की भले ही (कथित रूप से) उनकी सरकार ने चार सालों में इतना काम किया है जितना आज़ादी के बाद से लेकर उनकी सरकार बनने तक़ सब सरकारों ने मिलकर भी नहीं किया है फिर भी वो 2019 का आम चुनाव हिंदू मुसलमान करते-करते ही लड़ेंगे।

सत्तर सालों के इतिहास में शायद पहली बार देश ने ऐसा प्रधानमंत्री देखा होगा जिसने झूठ पर विजय पा लिया है, जो तथ्य खुद ही गढ़ लेता हो। और तो और गोदी मीडिया में भी उनके मूंह से निकले हर वाक्य को सच की कसौटी पर परखे बिना ही सच की तरह पेश कर डालने की एक होड़ सी मची हुई है। उनके भाषणों की टीवी चैनल और अखबारों के पन्नों पर दिखाते और लिखते समय सवालिया निशान (?) का इतनी चालाकी से इस्तेमाल किया जाता है की आप शक़ भी नहीं कर पाएंगे और उनके किसी कथित दावे को और झूठी बातों को सच बनाकर आपके ज़हन में उतार दिया जायेगा।

सबसे तेज़ रहने की होड़ में अखबारों और चैनलों को इतनी फुर्सत ही नहीं बची है की वो प्रधानमंत्री जी के भाषणों का विश्लेषण करके सच और झूठ को अलग-अलग करके जनता के सामने पेश करने के अपने फर्ज को ईमानदारी से अंजाम दे सके। लिहाज़ा सच और झूठ की मिली जुली खिचड़ी पर ही ब्रेकिंग न्यूज़ का तड़का लगाकर धड़ा-धड़ परोसा जा रहा है। पतंजलि से लेकर जियो के विज्ञापनों के शोर में उनके भाषणों में ज़ोर-ज़ोर से बोला गया झूठ इतनी आसानी से दबा दिया जाता है की जनता को भनक भी नहीं लग पाती।

चुनाव नज़दीक आते ही नये नवेले तथ्यों को गढ़कर उसे सच की चाशनी में डुबोकर जनता के सामने पेश करने का सिलसिला बड़ी तेज़ी से शुरू हो जाता है। और लाजवाब भाषण शैली और मोदी मोदी मोदी के शोर के बेहतरीन कांबिनेशन के बीच उसे इस तरह से सजा धजाकर जनता की अदालत में पेश किया जाता है की उसके सामने अच्छा खासा सच भी बौना नज़र आने लगता है। मोदी जी की कल की आजमगढ़ की रैली में कही गयी दो प्रमुख बातों “कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी और चार सालों में 70 सालों से ज़्यादा काम” के बारे में किसी जानकार व्यक्ति से पूछेंगें तो हंसते हंसते इन दोनों बातों को सिरे से झूठ करार देने में दो पल भी नहीं लगाएगा।

दरअसल मोदी जी ने देश की 125 करोड़ जनता को किसी वाट्सएप ग्रूप का सदस्य समझ कर उसे उसी तरह से ट्रीट करना शुरू कर दिया है। कि जिसे (किसी कथित मैसेज की) सही और गलत की पहचान करने ज़्यादा ये चिंता रहती है की कितनी जल्दी इसे दूसरों तक़ पहुँचाकर पुण्य हासिल किया जाए या उसे कथित तौर पर किसी ऐसी घटना के प्रति अवेयर करा दिया जाय जिसका अस्तित्व ही नहीं है। पिछले चार सालों में वाट्सएप के जिस सड़ांध मारते कचरे (कथित ज्ञान) के ज़रिये लोगों के ज़हनों को संक्रमित किया गया है वो कचरा ज्ञान अब चुनावी मंचों से पूरे देश को परोसा जा रहा है क्योंकि अब हमारा दिमाग उस चीज़ का आदि हो चुका लिहाज़ा हमें इससे कोई मतलब नहीं की परोसा जा रहा तथ्य सही है या नहीं हमें तो बस उसे आगे फाॅरवर्ड करके लोगों का कथित रूप से भला करना है।

राहुल गांधी को अब ये अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए की उनका मुकाबला एक ऐसे नेता है जिसे सच और झूठ से कोई मतलब नहीं है। वो मंचों पर कांग्रेस को मुसलमानों की पार्टी भी बता सकता है और राहुल गांधी को राहिल खान साबित करने में उसे तनिक भी देर नहीं लगेगी क्योंकि अब लोकतंत्र का चौथा खंभा सत्ताधारी नेताओं की रखवाली ना करके विपक्षी नेताओं का बोरिया-बिस्तर बांधने की उनके सपने को पूरा करने की मुहिम का हिस्सा बन चुका है। लिहाज़ा राहुल को अपनी और अपनी पार्टी की स्ट्रेटजी बदलनी होगी वरना ये झूठ बोल-बोल कर सच को यूं ही सरेआम परेशान करते रहेंगे। और राहुल और उनकी कांग्रेस सब कुछ छोड़कर अपना और अपने नेता का बचाव करने में ही खुद को खपाती रहेगी और उनका मक़सद भी बस इतना सा ही है।

 

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