
कर्नाटक का सियासी पारा भी चढ़ने लगा है. बेंगलुरु में मौजूद कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि बीजेपी उनके विधायकों को धमका रही है. उन पर दबाव बना रही है, उसे लोकतंत्र में भरोसा नहीं, आजाद ने कहा कि अगर राज्यपाल ने संवैधानिक मूल्यों का पालन नहीं किया और हमें सरकार बनाने के लिए निमंत्रित नहीं किया, तो यहां खूनी संघर्ष होगा.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस विधायकों के असंतुष्ट होने की अफवाहें फैलाई जा रही हैं, लेकिन वास्तव में बीजेपी असंतुष्ट है.इस बीच कांग्रेस विधायक अमरेगौड़ा ने कहा है कि बीजेपी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री के पद का ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया.
अमरेगौड़ा लिंगनागौड़ा पाटिल बयापुर कर्नाटक के कुश्तगी से विधायक हैं. आजाद ने कहा कि राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है. बीजेपी के पास 104 सीटें हैं, हमारे (कांग्रेस-जेडीएस) पास 117 सीटें हैं. राज्यपाल पक्षपाती नहीं हो सकते हैं.
कर्नाटक में फिलहाल त्रिशंकु विधानसभा के आसार दिख रहे हैं यानी किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जो आंकड़ा नजर आ रहे हैं वो इस प्रकार है- बीजेपी-104, कांग्रेस-78, JDS-37 अन्य-3 224 में से 222 सीटों पर चुनाव हुआ है यानी बहुमत के लिए 112 सीट चाहिए, जो किसी भी पार्टी के पास नहीं है।
हालांकि कांग्रेस ने JDS को मुख्यमंत्री पद ऑफर करते हुए बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है। लेकिन बीजेपी शांत तो बैठने वाली है नहीं…जाहिर है अब विधायकों की खरीद फरोख्त शुरू होगी, धनबल, बाहूबल का प्रयोग होगा। एक राजनीतिक पार्टी दूसरे राजनीतिक पार्टी के विधायकों को खरीदने का प्रयास करेगी, सभी राजनीतिक दल अपने-अपने विधायकों को बचाने का प्रयास करेंगे। बीजेपी जहां बहुमत के आंकड़े छूने में नाकाम रही है तो कांग्रेस ने बिना मौका गंवाए जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) को समर्थन देने का ऐलान करते हुए उन्हें सीएम पद का ऑफर दे दिया है। वहीं बीजेपी ने भी सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है। ऐसे में अब राज्यपाल के विवेक पर ही सबकुछ निर्भर करता है। आमतौर पर राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं, लेकिन हाल में हुए गोवा, मेघालय और मणिपुर विधानसभा चुनावों में चुनाव के बाद बने नए गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया जा चुका है।
इसलिए कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार बनने के ज़्यादा आसार नज़र आ रहे हैं। गठबंधन सरकार की संभावना भले ही ज़्यादा हों लेकिन बीजेपी भी राज्य में सत्ता पर काबिज़ होने के लिए सारे जतन करती दिखाई दे रही है। बीजेपी द्वारा विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की आशंका भी जताई जा रही है। बीजेपी 104 पर सिमट गई है । कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर (78+38=116 )दावा पेश किया लेकिन राज्यपाल ने ठुकरा दिया काश राज्यपाल ने गोवा , मणिपुर और मेघालय में भी यहीं किया होता ?
अब बीजेपी के पास एक ही रास्ता है कि अब कांग्रेस या जेडीएस के विधायको से अलग अलग मिलकर उन्हे CBI, ED और IT का डर दिखाकर अपनी ओर मिला ले या कम से कम 8 विधायको को खरीद ले । बीजेपी के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं होगी उसने पहले भी उत्तराखंड और अरुणाचल में ऐसा कर चुकी है । या दूसरा रास्ता ये हो सकता है कि बीजेपी पूरी JDS पार्टी के पीछे ही CBI , ED या IT को लगा दे तो BJP और JDS (104+38=142) की सरकार बन जाये । यदि बीजेपी को कर्नाटक में सरकार बनानी है तो इन सभी असंवैधानिक रास्तो में से किसी न किसी रास्ते को अपनाना होगा ।
इन सभी खेल के बीच राज्यपाल की भूमिका भी अहम होगी । यह तो निश्चित है कि कर्नाटक में सरकार चाहे जिसकी बने जीत तो केवल धर्म की ही हुई है इसलिए अगले पाँच साल तक कर्नाटक में आधिकाँस काम धर्म के विकास का ही होगा जैसे कि 2014 से राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है।