संघ के मंच से प्रणव दा ने सिखाई देशभक्ति :

देश की नज़र नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय पर इसलिए रही क्योंकि वहां पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया। आरएसएस के मंच पर प्रणब का पहुंचना सबके लिए चौंकाने वाला था। मीडिया से लेकर सियासी गलियारों में कयास लगाए जा रहे थे कि इस मंच से प्रणब दा क्या बोलेंगे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने भारत के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि मैं यहां देश और देशभक्ति समझाने आया हूं। मैं यहां देश की बात करने आया हूं।

आरएसएस के मंच से अपने संबोधन में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, “मैं यहां देश और देशभक्ति समझाने आया हूं। मैं यहां देश की बात करने आया हूं।”उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है। देशभक्ति का मतलब देश की प्रगति में आस्था है। भेदभाव और नफरत से हमारी पहचान को खतरा है। सहिष्णुता ही हमारी ताकत है। धर्म कभी भारत की पहचान नहीं बन सकता, नफरत से देश को सिर्फ नुकसान है। भारत के दरवाजे सबके लिए खुले हैं।प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है। यह देश अपने अलग-अलग रंगों, भाषाओं की वजह से बना है, यही इसकी पहचान हैं।

उन्होंने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसा गांधी जी ने समझाया था कि भारतीय राष्ट्रवाद कोई भिन्न नहीं, न ही आक्रामक और न ही विनाशकारी है।पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जिक्र करते हुए कहा कि पंडित नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में साफ लिखा है कि, “मुझे विश्वास है कि राष्ट्रवाद केवल हिंदू, मुसलमानों, सिखों और भारत के अन्य समूहों के विचारधारात्मक एकता से ही बाहर आ सकता है। भेदभाव और नफरत से भारत की पहचान को खतरा है।”

उन्होंने कहा कि विजेता होने के बावजूद सम्राट अशोक शांति का पुजारी था। 1800 साल तक भारत दुनिया के ज्ञान का केंद्र रहा है। भारत के द्वार सभी के लिए खुले हैं।प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सहनशीलता ही हमारे समाज का आधार है। हमारी सबकी एक ही पहचान ‘भारतीयता’ है। हम विविधता में एकता को देखते हैं।उन्होंने कहा कि समाज के अंदर हर विषय पर चर्चा होनी चाहिए। हम किसी विचार से सहमत हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन चर्चा होनी चाहिए।पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि विचारों में समानता के लिए संवाद होना बेहद जरूरी है। बातचीत से हर समस्या का समाधान संभव है। शांति से ही समृद्धि मिलेगी।प्रणब मुखर्जी ने कहा कि बहुत पहले कौटिल्य ने कहा था कि प्रजा की खुशी में ही राजा की खुशी निहित होती है। प्रजा का हित ही राजा का हित होता है। अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि आरएसएस के नागपुर मुख्यालय में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को संघ के प्रचार के लिए ही बुलाया गया था।

लगातार कांग्रेस के नेताओं आर अपनी बेटी तक की तरफ से नसीहत के बावजूद आखिरकार पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के कार्यक्रम में हिस्सा लिया, राष्ट्रवाद की क्लास भी ली, लेकिन कई सवाल फिर भी बचे रहे. प्रणब मुखर्जी ने ध्यान दिलाया कि सदियों से भारत में लोग आते रहे हैं- लेकिन वो यहीं के हो जाते रहे. हालांकि ये सवाल उठ सकता है कि प्रणब ने प्राचीन भारत का जितना ज़िक्र किया, मध्यकाल को उतना याद नहीं किया, मुगल काल का नाम नहीं लिया और छह सौ साल के मुस्लिम आक्रमण की बात की।

काँग्रेस ने किसी घसियारे को राष्ट्रपति नहीं बनाया था…प्रणव दा…आपका ह्रदय से आभार…आपने उन मानदंडो को पुनः जीवंत किया है जिन पर हम गर्व करते आये हैं… आप समस्त उपमाओं… प्रशंसाओं से परे हैं…आप महान हैं और हम भाग्यशाली… इससे अधिक और क्या कहूँ…भावुक हूँ…विव्हल हूँ…गर्वित हूँ…मैं काँग्रेसी हूँ।

✍ शिल्पी सिंह

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