कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 3 भाषा नीति पर दिया बड़ा बयान

केंद्र सरकार के नए तीन-भाषा बहस में पूर्व मंत्री और कांग्रेस के सांसद शशि थरूर भी शामिल हो गए। केरल के तिरुअनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कहा कि तीन-भाषा फॉर्मूले का हल इस विचार को दरकिनार करने में नहीं बल्कि देश भर में इसके कारगर क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने में है. थरूर ने इस फॉर्मूले को लेकर चल रही बहस में अपना मत देते हुए कहा कि सबके लिए समान रूप से सिद्धांत लागू होना चाहिए.

शशि थरूर ने समाचार एजेंसी ANI से बात करते हुए कहा कि ‘दक्षिण भारत में हममें से कई लोग दूसरी भाषा के तौर पर हिंदी सीखते हैं, लेकिन उत्तर भारत में कोई मलयालम या तमिल भाषा नहीं सीखता. इस तीन-भाषा के फॉर्मूले की सफलता इसमें है कि देश भर में इसे ठीक तरह से लागू किया जाए’.

जब प्रकाश जावड़ेकर मानव संसाधन विकास मंत्री के पद पर थे, जब उन्होंने प्रमुख वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक कमिटी गठित किया था. इस कमिटी ने नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट अब सरकार को सौंप दिया है, जिसमें गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव ​रखा गया है.

इस प्रस्ताव के सामने आने के बाद से ही दक्षिण भारत से इस प्रस्ताव का विरोध शुरू हो चुका है और कई नेता कह रहे हैं कि सरकार किसी राज्य पर कोई और भाषा न थोपे. अब इस ​बहस में थरूर भी शामिल हो चुके हैं और उन्होंने कहा है कि शिक्षा नीति के इस ड्राफ्ट में दिया गया ये प्रस्ताव कोई नई बात नहीं है. 60 के दशक में भी इस तरह के फॉर्मूले पर बात हुई थी लेकिन इसे कभी ठीक ढंग से क्रियान्वित नहीं किया जा सका.

दूसरी तरफ तमिलनाडु में प्रभावशाली पार्टी DMK के प्रमुख एमके स्टालिन ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था कि ये फैसला ‘मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर फेंकने जैसा’ होगा. वहीं, पार्टी के टी शिवा ने कहा था कि केंद्र सरकार ऐसे फैसले से आग से खेलने की कोशिश कर रही है.

डीएमके के अलावा सीपीआई और भाजपा की सहयोगी पार्टी रही पीएमके ने भी इसी आशय के बयान दिए थे कि सरकार का ये तीन-भाषा फॉर्मूला दक्षिण भारत में हिंदी थोपने जैसा ही है.

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