सेवा और सहयोग की नीयत से यूपी कांग्रेस ने अपने घरों को पैदल लौट रहे हजारों प्रवासियों की मदद करने के लिए अपनी तरफ से 1000 बसें चलाने का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश सरकार को दिया। सहयोग और सेवा की भावना से प्रेरित हमारे इस प्रस्ताव से न जाने क्यों उत्तर प्रदेश सरकार पहले दिन से ही असहज हो गई। पहले 17 मई को तो उन्होंने हमारे प्रस्ताव को नकार दिया और यूपी की सीमा से 500 बसों को वापस भेज दिया। 18 मई को फिर उन्होंने हमारा प्रस्ताव स्वीकारते हुए बसों के दस्तावेज माँगे। उन्होंने वाहनों की लिस्ट के साथ चालकों-परिचालकों के नाम, बसों की फिटनेस व प्रदूषण प्रमाणपत्र के साथ हमें सिर्फ 10 घंटे का समय देकर सारी बसों को लखनऊ लाने को कहा। यह फैसला बिलकुल बेतुका था क्योंकि मामला तो दिल्ली-यूपी बॉर्डर से प्रवासियों को ले जाने का था। खाली बसों को लखनऊ ले जाना हमें समय और संसाधनों की बर्बादी लगी। इस पर यूपी सरकार ने तर्क दिया कि 2 घंटे में अपनी बसों को नोएडा और गाजियाबाद की सीमा पर खड़ा करें। इसी बीच सरकार ने भयंकर दुष्प्रचार शुरू करके हम पर फर्जी लिस्ट देने का आरोप लगा दिया। उन्होंने इस तथ्य को नकार दिया कि हमारी 900 बसें आगरा के ऊँचा नगला बॉर्डर और 200 बसें नोएडा के महामाया पुल पर 19 मई की दोपहर से खड़ी थीं। 19 मई की रात अजय लल्लू गिरफ्तार कर लिए गए।
एक हजार से अधिक बसें चलने की अनुमति का इंतजार करती खड़ी रहीं। दो दिनों बाद 1000 बसें खाली वापस लौट गईं।
जब उन्हें लखनऊ पुलिस आगरा से लखनऊ जेल के लिए लेकर निकल रही थी तो मैंने किसी तरह से उनसे फोन पर बात की। मैं चिंतित थी- ‘क्या जरुरत थी इस महामारी के समय में गिरफ्तार होने की? अपनी सेहत का थोड़ा तो ख्याल रखिये’। इससे पहले कि मैं पूरी बात कह पाती, फोन पर उनकी उत्साह भरी हंसी फूट पड़ी- ‘अरे दीदी, ये दमनकारी सरकार है। इसके सामने मैं कभी भी सिर नहीं झुकाउंगा। आप मेरी फिक्र मत करो’।
अगली सुबह उनके ऊपर कई धाराओं में फर्जी मुकदमें लाद दिए गये। आरोप कि उन्होंने यूपी सरकार को वाहनों के नम्बर गलत दिए। इसी ‘अपराध’ में वे आज तक लखनऊ जेल में कैद हैं। यह बीसवीं बार है जब उन्हें एक डरी हुई अलोकतान्त्रिक सरकार ने हिरासत में लिया है। इतने अन्याय और दमन के बाद भी वे निडर, अडिग और अजेय हैं। लोकतंत्र और न्यायालय पर उन्हें पूरा भरोसा है। त्याग और सेवा की उनकी भावना अजेय है।
अजय लल्लू उस भारत के सच्चे नागरिक हैं जिसके लिए महात्मा गांधी ने लड़ाई लड़ी थी। वे इंसाफ के हकदार हैं। उनके साथ न्याय होना चाहिए।