मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट कर भारतीय जनता पार्टी ने भले ही करीब 10 महीने पहले सरकार बना लिया और फिर उपचुनाव में अपनी सरकार को बचा भी लिया हो मगर सरकार और संगठन में सामंजस्य बनाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी के सामने एक संकट की स्थिति दिख रही है।
पार्टी के लिए अब असंतोष को काबू में रखने की बड़ी चुनौती नई मुसीबत बनने लगी है। राज्य में साल 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में BJP को सत्ता से बाहर होना पड़ा था, मगर कांग्रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में हुई बगावत के बाद BJP को मार्च 2019 में फिर सत्ता मिल गई थी।
28 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुए उनमें से 19 पर BJP ने और नौ पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. उप चुनाव के बाद BJP को राज्य में पूर्ण बहुमत मिल गया.राज्य में दिसंबर में हुए उपचुनाव के नतीजों से प्रदेश सरकार को पूर्ण बहुमत हासिल हो गया।
उसके बाद से ही मंत्रिमंडल विस्तार और पार्टी संगठन के विस्तार के साथ ही निगम-मंडलों की नियुक्ति की तमाम नेता आस लगाए हुए हैं
पिछले दिनों मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, मगर दो उन विधायकों को मंत्री बनाया गया जो अभी हाल ही में उप चुनाव जीते थे और उन्हें बगैर विधायक रहते हुए छह माह का वक्त हो जाने पर पद त्याग करना पड़ा था. शिवराज सरकार के चौथे मंत्रिमंडल विस्तार में जगह न मिलने से कई नेता नाराज और संतुष्ट हैं. इसे खुले तौर पर अजय विश्नोई ने जाहिर भी किया है. विश्नोई ने तो विंध्य और महाकौशल की उपेक्षा का भी सीधे तौर पर आरोप लगा डाला।
पार्टी के प्रदेश संगठन के विस्तार की कवायद तो लंबे अरसे से चल रही है और कई बार यहां तक कहा गया कि जल्दी ही कार्यकारिणी की घोषणा कर दी जाएगी, मगर उसमें विलंब होता जा रहा है. इसके साथ ही निगम-मंडलों में भी नियुक्ति का सभी को इंतजार है।
भाजपा में असंतोष पनपने पर कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने तो इशारों ही इशारों में 35 विधायकों के कांग्रेस के संपर्क में होने की बात तक कह डाली. उनका कहना है कि जिन्हें सत्ता में बैठना है, वे संगठन से संतुष्ट नहीं होंगे।
35 ऐसे विधायक हैं जो छह और सात बार निर्वाचित हुए है, वरिष्ठता के मामले मे बहुत आगे हैं, उन्हें संगठन का लालच देकर रोक नहीं पाओगे क्योंकि उन्हें सत्ता में बैठाने का वादा किया था, अब वे रुकने वाले नहीं है।