मेघालय में कांग्रेस को जोरदार झटका लगा है। बुधवार रात को पार्टी के 12 विधायक टीएमसी में शामिल हो गए। निश्चित रूप से इससे पूर्वोत्तर में कांग्रेस और कमजोर होगी। इससे पहले भी कई राज्यों में कांग्रेस के विधायकों ने पाला बदला है और वे दूसरे दलों में जाते रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में तीसरी बार सरकार बनाने के बाद सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय रूप-स्वरूप देने में जुट गई हैं.
बीते दिनों में टीएमसी ने उसके कई बड़े नेताओं को तोड़ा है और अब उसे एक और तगड़ा झटका दिया है।
कांग्रेस छोड़ने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा भी शामिल हैं। इन विधायकों ने विधानसभा के स्पीकर मेतबाह लिंगदोह को पत्र लिखकर अपने इस क़दम के बारे में उन्हें बता दिया है। मेघालय में विधानसभा की 60 सीटे हैं।
जाहिर है पूर्वोत्तर में कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ा झटका है. चूंकि कांग्रेस के दो-तिहाई से ज्यादा विधायकों ने पाला बदला है. ऐसे में उन पर दलबदल कानून नहीं लागू होगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गुरुवार को एक बजे शिलांग में प्रेस कांफ्रेंस कर मुकुल संगमा विधिवत टीएमसी में शामिल होने का ऐलान करेंगे. सूत्रों के मुताबिक विंसेंट एच पाला को मेघालय प्रदेश कांग्रेस समिति का प्रमुख बनाए जाने के बाद से संगमा नाराज चल रहे थे. संगमा का कहना था कि पार्टी नेतृत्व ने पाला की नियुक्ति को लेकर उनसे कोई राय-मशविरा नहीं किया. इसके बाद ही कयास लगाए जा रहे थे कि संगमा टीएमसी में शामिल हो सकते हैं. इसे देखते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संगमा को दिल्ली भी तलब किया था, लेकिन असंतोष को खत्म नहीं कराया जा सका और संगमा ने महीने भर बाद ही कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया.
इन 12 विधायकों के टीएमसी में शामिल होने के बाद राज्य में टीएमसी मुख्य विपक्षी दल बन जाएगी।
बता दें कि ममता बनर्जी ने बीते दिनों असम की पूर्व सांसद सुष्मिता देव को, उत्तर प्रदेश में राजेशपति और ललितेशपति त्रिपाठी को, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता लुईजिन्हो फलेरो को टीएमसी में शामिल किया है। बिहार में कांग्रेस के बड़े चेहरे रहे कीर्ति आज़ाद को भी टीएमसी में शामिल कर लिया है।
ममता बनर्जी बीते दिनों में कांग्रेस के ख़िलाफ़ हमलावर दिखी हैं। ममता ने कुछ दिन पहले कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ़ इसलिए ताक़तवर होते जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस राजनीति को लेकर गंभीर नहीं है। उनके क़रीबी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी कांग्रेस को लेकर आक्रामक रूख़ दिखा चुके हैं।
लेकिन सवाल यहां यह है कि ममता आख़िर कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर कौन सी विपक्षी सियासी एकता बनाना चाहती हैं। वह कांग्रेस के नेताओं को तोड़ ही रही हैं, जिन राज्यों में कांग्रेस बीजेपी के सीधे मुक़ाबले में है, उन राज्यों में भी चुनाव लड़ रही हैं और अब मेघालय में तो उन्होंने एक तरह से कांग्रेस को ख़त्म ही कर दिया है।
दिल्ली दौरे पर आई ममता बनर्जी इस बार कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी नहीं मिलीं। इससे समझा जा सकता है कि ममता के इरादे क्या हैं, जबकि कुछ महीने पहले तक वे कहती थीं कि कांग्रेस अगर विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करे तो भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं है।