कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब 2 हफ्ते से भी कम का वक्त बचा हुआ है. इस चुनाव के दो प्रमुख दावेदार भाजपा और कांग्रेस हैं. इन दोनों के सामने इस वक्त चुनौतियां बिल्कुल अलग हैं. दोनों पार्टियों में से किसी की कोई गलती उनके लिए सांप सीढ़ी का खेल बन सकती है. लेकिन जितने भी राजनीतिक सर्वे आ रहे हैं उसमें भाजपा इस लड़ाई में काफी पीछे दिखाई दे रही है और कर्नाटक का रण कांग्रेस आसानी से जीती हुई नजर आ रही है.
लेकिन इन सबके बीच यदि भाजपा या उसके विधायक anti-incumbency का सामना कर रहे हैं तो कांग्रेस ऐसी जमीन पर चल रही है जो पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है. क्योंकि भाजपा से कांग्रेस में आए हुए कई नेता टिकट की जुगाड़ में है और अगर कांग्रेस यह चुनाव आसानी से जीत भी जाती है तो क्या वह अपने विधायकों को अपने पाले में बनाए रख पाएगी, इस की चुनौती भी कांग्रेस के सामने होगी.
कर्नाटक का विधानसभा चुनाव सांप्रदायिक रंग भी ले रहा है. अमित शाह ने एक जनसभा में यह भी कहा कि अगर कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार चुनी जाती है तो राज्य में सांप्रदायिक दंगे होंगे. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक में सांप्रदायिक मुद्दे अपने चरम पर पहुंच गए हैं.
10 मई को होने वाले मतदान यह तय करेगा कि अगले 5 साल तक कर्नाटक में कौन सरकार चलाएगा. लेकिन जहां बीजेपी के नेता अपनी रैलियों में सांप्रदायिक मुद्दों को हवा दे रहे हैं, वहीं कांग्रेस जनता के मुद्दों पर चुनाव लड़ती हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी ने कई चुनावी वादे कर्नाटक की जनता से किए हैं. अगर वह काम कर जाते हैं तो राजनीतिक सर्वे के मुताबिक आने वाले दिनों में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बन सकती है.
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