कल मैंने जो भी पोस्ट्स लिखीं वो सब इतिहास में दर्ज़ तथ्यों पर आधारित थीं. आप कह सकते हैं कि कल अटल पर सच बोलने का मौका नहीं था लेकिन सच तो सच है ..वही अटल है..
दिन भर टीवी पर इतना झूठ परोसा जा रहा था कि मुझे अंतत: सच लिखना ही पड़ा.
एक बात और गौर करें… राजीव जी का शव क्षत विक्षत था फिर भी दर्शनार्थ तीन दिन रखा गया .. इंदिरा जी गोलियों से छलनी हुईं लेकिन शव तीन दिन रखा गया..क्या कारण है कि अटल जी का शव मृत्यु के सिर्फ 24 घण्टे में ही अन्तिम क्रिया के लिए भेजा जाना प्रस्तावित है?
दरअसल उनकी मौत 14 की रात को हो गयी थी लेकिन 15 का भाषण शो ख़राब न हो इसलिये इस बात को गोपनीय रखा गया. 16 के दिन का इस्तेमाल देश में माहौल बनाने के लिए किया गया. इस स्थिति में शव पहले ही सड़ने लगा और एक दिन में अंतिम संस्कार के अलावा कोई चारा नहीं बच रहा है.
दूरदर्शन ने कल दोपहर 2.40 पर उनकी मौत की ख़बर चला दी थी जिसका विडिओ उपलब्ध है लेकिन पीएमओ के दबाव में उस ख़बर को हटा दिया गया. गौरतलब है कि सिर्फ दूरदर्शन के संवाददाता ही AIIMS के अंदर थे और उनकी ख़बर पक्की थी.. लेकिन अब वो सब ससपेंड कर दिए जायेंगे.
कल से मीडिया यह झूठ परोस रहा है कि अटल जी ने चीन से सम्बन्ध सुधारने में बहुत काम किया लेकिन यह किसी ने नहीं बताया कि उन्होंने ही घुटने टेककर तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग स्वीकार किया और बदले में अरुणाचल पर चीन को मनाने में नाकाम रहे. चीन आज भी स्टेपल वीसा ही देता है अरुणाचल के निवासियों को. ये महान कूटनीतिक पराजय थी..
यहीं उतावला पन कारगिल में भी दिखाया गया जब बिना सोचे समझे नवाज़ को गले लगाया..और बाद में अमेरिकी दबाव में LOC पार न कर के सैकड़ों जवानों को मौत के मुँह में झोंका गया. कारगिल की कई पहाड़ियाँ आज भी पाकिस्तान के कब्ज़े में हैं जो कभी भारतीय थीं..अमेरिकी दबाव में एकतरफा युद्ध विराम किया गया और अपनी मातृभूमि पकिस्तान को सौंप दी गयी.
परमाणु विस्फोटों के सम्बन्ध में उन्हें बहुत निर्णायक नेता बताया जा रहा है लेकिन गौरतलब है कि भारत 1974 में पोखरण प्रथम के समय ही परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन गया था .. 1998 के परिक्षण इस मायने में नाकाम माने जायेंगे क्यूँ कि इनके एक माह के भीतर ही पकिस्तान ने अपने कच्चे पक्के बम फोड़कर परमाणु शक्ति का स्टेटस हासिल कर लिया और जो कहीं टिकता न था वो कूटनीतिक रूप से वो बराबरी पर आ गया.
अटल जी से मुझे कोई वैमनस्य नहीं है ..साथ ही उन में मेरी कोई श्रद्धा नहीं है.. और समालोचना मेरा अधिकार भी है ..
एक व्यक्ति जो किसी बम, गोली से नहीं मरा है अपितु भरपूर जीवन जीने के बाद गया है ..उसे शहीदों से महान बताने के षड्यंत्र का मैं विरोध करता हूँ.
अटल बिहारी जी का नाम जब भी आएगा तो मोरारजी सरकार की जनता सरकार के पतन पर सुब्रमण्यम स्वामी के लेख भी सामने आयेंगे, उतावले पन में गँवाए हुए तिब्बत और कारगिल भी याद आयेंगे, अकर्मण्यता की पराकाष्ठा संसद पर हमला भी याद आएगा, आतंक के आगे घुटने टेकने वाला और देश को लज्जित करने वाला कंधार भी याद आयेगा..
याद आएगी संसद हमले के बाद अमेरिकी दबाव में पकिस्तान को मुँह तोड़ जवाब न दे पाने की विफलता.. याद आयेगा नवरत्न कम्पनियों का अंधाधुंध विनिवेश और बेचवाली..याद आएगा कि जिस कीमत में वेदांता ने हिन्दुस्तान जिंक को खरीदा उस से तिगुने मूल्य का स्क्रैप बेचा ठीक अगले दिन ,, याद आएगा बीएसएनएल को पीछे कर के रिलायंस कम्युनिकेशन को “कर लो भारत मुट्ठी में” की परवानगी देना….
याद आयेंगे कारगिल के कफ़न जिन में दलाली खायी गयी और याद आयेंगे बीजेपी के अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण जो इसी दौरान डॉलर में रिश्वत लेते हुए रँगे हाथों गिरफ्तार हुए और बाद में दोषी भी पाए गए.
याद आयेंगे मुग़ल सराय पर लावारिस लाश के रूप में पड़े दीनदयाल उपाध्याय और उस से सम्बंधित आरोप, याद आएगी जनसंघ संस्थापक बलराज मधोक की जीवनी और अटल जी के चरित्र पर उठे प्रश्न.. और याद आएगी लाहौर की प्रसिद्द बीफ कचौरी ..
लिखने को और भी बहुत कुछ है लेकिन इससे अधिक न लिखूँगा..
ये लेख सिर्फ इस यह जताने के लिए है कि जब आप शोकाकुल हों और आपके दिवंगत पर कोई अभद्र टिप्पणी करे तो कैसा महसूस होता है..
राजीव जी पर अमित मालवीय की टिप्पणी हो या गाँधी के हत्यारे गोडसे को महिमा मंडित करती प्रीती गाँधी की टिप्पणी हो..या फिर इंदिरा जी, संजय जी और नेहरु जी के निधन के बाद उनका लागातार किया गया चरित्र हनन हो..मेरा लेख उतना घटिया नहीं है.. मेरे लेख के तथ्य स्वतंत्र रूप से जाँचे जा सकते हैं..
अंतत: कुत्ते का पिल्ला भी मर जाय तो हमें दुःख होता है ..
(ये लेख मेरा नहीं है… मैं ऐसा नहीं हूँ.. लेकिन मेरे अन्दर पिछले 4 साल से जो मोदी घुसा हुआ है ये उसकी जीत का परिचायक है,, ये मेरे अन्दर के गाँधी की हार का वीभत्स संगीत है…
तुम मुझे अपने जैसा देखना चाहते थे न भक्तों… लो मैं तुम्हारे जैसा हो गया..
निष्ठुर, अमानवीय, संवेदनाशून्य)
- अनिल मरमट उर्फ अनाम विद्रोही