यूं तो सीबीआई के दुरुपयोग के, सरकारी तोता होने के आरोप समय समय पर लगते ही रहे हैं! लेकिन, सीबीआई_प्रमुख की सत्ता द्वारा बलि लेने के 2 मौके ही आए हैं 70 सालों में!

जब सीबीआई ने धीरुभाई अंबानी पर छापा मारा था, तो पहली बार सीबीआई चीफ को तत्काल हटा दिया गया था,
अटलबिहारी वाजपेई सरकार द्वारा!
सोमवार 29 अक्टूबर को सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा, सुप्रीम कोर्ट में राफ़ेल सौदे पर रिपोर्ट दाखिल करने वाले थे!
मोदी सरकार द्वारा उन्हें जबरन छुट्टी पर भेजा गया!
हालांकि इस बार नौटंकी मोदी के खास विश्वासपात्र
व्यापमं और गोधरा की जांच करके भाजपाइयों को बचाने वाले
सीबीआई के विरोध के बावजूद नियम विरुद्ध नया पद बनाकर सीबीआई के विशेष निदेशक नियुक्त किए गए
गुजरात कैडर के IPS राकेश अस्थाना को लेकर रची गई है!

यहां ये बात गौरतलब है कि सीबीआई देश की सबसे बड़ी, महत्वपूर्ण और साख वाली जांच एजेंसी है!
देश ही नहीं विदेशों में भी सीबीआई का नाम, पहचान है!
ऐसे में सीबीआई में शामिल लोगों के राजनैतिक पूर्वाग्रह से पीड़ित होने का प्रश्न ही नहीं उठता!
हां ये संभव है और कई मर्तबा हुआ भी है कि राजनैतिक दबाव में सीबीआई ने काम किया है!
लेकिन
सरकारी जांच एजेंसी होने के बावजूद, नियमत: सीबीआई एक स्वतंत्र संस्था है!
ऐसे में सीबीआई प्रमुख/चीफ के सर्वोच्च पद तक पहुंचने वाले व्यक्ति के पूरे कैरियर में कोई भी दाग, कोई आरोप, कोई गलती दर्ज होने के संभावना ही नहीं है!
जरा सा भी संशय मात्र व्यक्ति को तमाम योग्यताओं के बावजूद सीबीआई के चीफ डायरेक्टर के पद के लिए अयोग्य बना देता है!

ऐसे में सीधे प्रमुख निदेशक को ही पद से हटाना सरकार के कुत्सित इरादों का ही घोतक है!

एक आखिरी बात……………..
चौकीदार ही_चोर है कोई शक

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