तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों की हार के बाद ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस में बड़े स्तर पर बदलाव देखने को मिलेगा. ऐसा लग रहा था कि कोई हार की जिम्मेदारी लेगा. कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक बदलाव देखने को मिलेगा और ऐसा लग रहा था कि नेतृत्व द्वारा कुछ सख्त फैसले लिए जाएंगे और 2024 का लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha Election) जीतने के लिए कोई ठोस रणनीति पर काम शुरू होगा.
लेकिन जिस तरह से राज्यों के प्रभारी बदले गए हैं या यूं कहें कि एक राज्य से हटाकर दूसरे राज्य में फिट किए गए हैं या फिर जिन्होंने प्रभारी रहते हुए अपने राज्यों के लिए कुछ काम नहीं किया उन्हें ही फिर से जिम्मेदारी दे दी गई है, उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि बदलाव के मूड में दिखाई नहीं दे रही है कांग्रेस या फिर प्रभारियों की नियुक्ति के स्तर पर अभी भी कांग्रेस के अंदर इच्छा शक्ति का अभाव है. या अपने पुराने ही नेताओं को फिट करने में कांग्रेस कार्यकर्ताओं और युवा नेताओं को मौका देने के मूड में नहीं है या फिर दे नहीं पा रही है.
सचिन पायलट को जरूर छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी दी गई है लेकिन सचिन के कद के नेता को छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य की जिम्मेदारी देकर कहीं ना कहीं ऐसा लग रहा है है कि यह सिर्फ खानापूर्ति है या फिर उन्हें राजस्थान से दूर करने की कोशिश की गई है. लोकसभा चुनावों को देखते हुए यह उम्मीद जताई जा रही थी कि राजस्थान में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर कांग्रेस अपने पुराने नेताओं को सख्त संदेश देने की कोशिश करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
देखा यही जा रहा है पिछले कुछ सालों से कि बड़े बदलावों के नाम पर उन्ही पुराने नेताओं की अदला-बदली हो रही है, उन्हें पुराने नेताओं को जिम्मेदारियां दी जा रही हैं. ऐसा लग रहा कि लगातार मिल रही असफलताओं के बावजूद नए प्रयोग न करने में कांग्रेस चैंपियन बनती जा रही है. नई पीढ़ी को जिम्मेदारी देने में अभी भी कांग्रेस कंजूसी कर रही है, जिसका खामियाजा चुनावी हार के रूप में लगातार देखने को मिल रहा है.
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की जिम्मेदारी अविनाश पांडे को दी गई है, जो कहीं भी इंचार्ज के रूप में अभी तक सफल नहीं हुए हैं. हालांकि प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के प्रभार से मुक्त किया गया है इसको लेकर कांग्रेस के कार्यकर्ता जरूर खुश होंगे, क्योंकि प्रियंका की टीम खासकर संदीप सिंह और उनके लोग, उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं को निराश कर रह थे. संदीप सिंह की टीम पर टिकट बेचने के भी अंदरुनी आरोप लगाते रहे थे.
कांग्रेस ने अपने राज्यों के प्रभारियों में बदलाव किया है, लेकिन लिस्ट देखकर कहीं से भी जनता को संदेश देने जैसा कुछ दिखाई नहीं देता है. कार्यकर्ताओं में इस लिस्ट को देखकर भी कोई जोश उत्पन्न होगा इसकी संभावना कम है. प्रियंका गांधी को किसी भी राज्य का प्रभार नहीं दिया गया है यह आश्चर्य पैदा कर रहा है. कुल मिलाकर कई पुराने मोहरों को नई जगह फिट कर दिया गया है.
क्या कांग्रेस 2024 का लोकसभा चुनाव, जिन राज्यों में उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है उसमें पहले से बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी? राजस्थान किसके भरोसे कांग्रेस जीत सकती है या फिर मध्य प्रदेश किसके भरोसे कांग्रेस जीतने का सोच सकती है? मध्य प्रदेश में जीतू पटवारी को कमान प्रदेश अध्यक्ष की दी गई है और उनसे उम्मीद भी है कि लोकसभा तक वह कांग्रेस को फिर से जिंदा करेंगे. लेकिन क्या छत्तीसगढ़ सचिन पायलट को भेज कर राजस्थान के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को निराश नहीं किया गया है?
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अविनाश पांडे को भेजकर कांग्रेस क्या मैसेज देना चाहती है? कांग्रेस कार्यकर्ताओं को? उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य जहां से 80 लोकसभा सिम आती है वहां अविनाश पांडे जैसे प्रभारी को प्रभार देने से पहले कांग्रेस ने उनका पिछला रिकॉर्ड या फिर यूं कहें की परफॉर्मेंस चेक की थी?