मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रयास है कि यह चुनाव कांग्रेस के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस पार्टी को छोड़ भारतीय जनता पार्टी में जाकर कांग्रेस की सरकार को गिराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हो जाए।
प्रदेश में होने वाला यह उपचुनाव कोई छोटा-मोटा उपचुनाव नहीं है। बल्कि, इसमें राज्य की सत्ता फिर से उलट-पुलट करने का माद्दा है। इसलिए कांग्रेस यह चुनाव दो मोर्चों पर लड़ रही है। एक तो वह हर हाल में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर फिर से प्रदेश की सत्ता में वापसी चाह रही है; और दूसरी ओर उसकी कोशिश कभी गांधी फैमिली के बेहद करीबी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से सियासी हिसाब भी चुकता करना है।
यह उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी और शिवराज सिंह चौहान के लिए सत्ता बचाने का चुनाव होगा तो कांग्रेस और कमलनाथ के लिए मुश्किल से हाथ आई सत्ता गंवाने का बदला लेने का। इस तरह से दोनों दलों की राजनीति इस उपचुनाव में दांव पर लगी हुई है, क्योंकि यह प्रदेश के लिए पूरी तरह से मिनी असेंबली इलेक्शन की तरह ही होने वाला है।
मार्च में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भाजपा की सरकार इसलिए बन पाई, क्योंकि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 22 बागियों ने अपनी विधायकी छोड़ दी। यानि, कमलनाथ सरकार नहीं गिरती अगर सिंधिया ने कांग्रेस से अपना रास्ता नहीं नाप लिया होता। जाहिर है कि कांग्रेस और कमलनाथ के मन में जो खुन्नस सिंधिया के लिए होगी, सीएम और भाजपा के लिए शायद उससे कम ही होगी।
सबसे बड़ी बात ये है कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, उनमें से 22 सीटें सिंधिया समर्थकों की ही हैं और माना जा रहा है कि वही सारे लोग इसबार भी हाथ में कमल थामकर भाजपा प्रत्याशियों के रूप में कांग्रेस उम्मीदवारों के सामने चुनावी मैदान में खड़े होंगे। यानि यह सीधी चुनौती कमलनाथ के लिए कांग्रेस की सारी सीटें बचाए रखने की है, तो सिंधिया को इसबार हवा का रुख भाजपा की ओर करना है।
यही वजह है कि कांग्रेस के नेता अब अपने पूर्व श्रीमंत को ही सीधे निशाने पर लेने लगें हैं।
प्रदेश के राजनीतिक पंडितों की मानें तो उपचुनाव को सिंधिया बनाम कमलनाथ बनाने के लिए कांग्रेस की ओर से सारे घोड़े खोल दिए गए हैं। इसकी वजह ये है कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 22 सिंधिया समर्थकों की तो हैं ही, उनमें से 16 ग्वालियर-चंबल संभाग में पड़ती हैं, जिसे सिंधिया परिवार का गढ़ माना जाता रहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि ग्वालियर-चंबल के लोगों ने विद्रोह को तो स्वीकार कर लिया है। लेकिन, इस इलाके की एक खासियत ये है कि यहां धोखेबाजी को सबक सिखाया जाता है। यही कारण है कि कांग्रेस सिंधिया और उनके समर्थकों को धोखेबाज साबित करने की कोशिशों में जुटी है और यही वजह है कि इस चुनावी जंग को सिंधिया बनाम कमलनाथ करने का प्रयास है।
दिग्विजय सिंह तो शुरू से ज्योतिरादित्य सिंधिया पर धोखा देने और जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी होने का आरोप लगा रहे हैं।