बुद्धिजीवी वर्ग की बीजेपी के खिलाफ वोट की अपील


पहले फिल्मी जगत के लोगो ने बीजेपी व बांटने की विचारधारा के खिलाफ वोट की अपील की अब लगभग 200 से अधिक वैज्ञानिकों ने भी बांटने की विचारधारा के खिलाफ वोट की अपील की हैं

लोकसभा चुनाव के बीच देश के शीर्ष संस्थानों के 200 से अधिक वैज्ञानिकों ने लोगों से अपने विवेक का इस्तेमाल कर वोट डालने की अपील की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि विरोधियों को देशद्रोही बताने का ट्रेंड चलाने वालों और लोगों को जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर बांटने वाली ताकतों को वोट न करें।

वैज्ञानिकों ने कहा कि यह चलन न सिर्फ वैज्ञानिक संस्थानों बल्कि लोकतंत्र के लि्ए भी खतरा है।  3 अप्रैल को की गई अपील में हस्ताक्षर करने वाले कई वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले पांच सालों में चुने गए राजनेताओं की तरफ से उठाए गए कदम ने देश में ‘वैज्ञानिक विचार’ पर हमला किया है।

ये लोग शिक्षा, विज्ञान और लोकतंत्र के प्रति आलोचनात्मक रहे हैं। हस्ताक्षर करने वाले वैज्ञानिकों ने उस चलन पर भी चिंता जताई है जिसमें राजनैतिक विरोधियों और सवाल पूछने वालों को देशद्रोही के रूप में पेश किया जा रहा है। इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमैटिकल साइंसेंज, चेन्नई के वरिष्ठ भौतिकविज्ञानी सिताभ्रा सिन्हा ने 1799 में स्पैनिश आर्टिस्ट फ्रांसिस्को गोया की तस्वीर का हवाला देते हुए कहा, ‘गोया के शब्दों में जब चर्चा बंद हो जाती है और तर्क सो जाते हैं, तब दैत्य का जन्म होता है।’

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स में एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर पार्थ मजूमदार ने कहा, ‘एक वैज्ञानिक के रूप में, मुझे उन लोगों से सतर्क रहना होगा जो छात्रों और समाज को प्रभावित करते हैं, और जो विज्ञान के संचालन के लिए धन को नियंत्रित करते हैं।’

वैज्ञानिकों ने कहा, ‘यदि वैज्ञानिक विज्ञान का समर्थन नहीं करते हैं और उस जगह विरोध नहीं करते जहां वैज्ञानिक पद्धति से विचलन होता है, तो हम अपने कर्तव्य में असफल हो रहे हैं। इस अपील पर हस्ताक्षर करने वाले कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि अनेक वैज्ञानिक सरकारी संस्थानों में काम कर रहे हैं और इसके बदले में आने वाले नतीजों के जोखिम का सामना कर रहे हैं।

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में प्रोफेसर सत्यजीत रथ ने कहा, ‘वैज्ञानिकों ने इस समय यह असामान्य कदम उठाने का निर्णय इस लिए लिया है क्योंकि भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में पिछड़ी दिखने वाली प्रतिगामी राजनीतिक विचारधाराएं हमें चिंतित कर रही हैं। ‘

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