लंबे समय से कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कमजोर होने का कारण क्षेत्रीय दल रहे हैं। उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को लगभग समाप्त कर दिया है। यही हाल बंगाल तथा दिल्ली में भी है। क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के वोट बैंक पर कब्जा करके कांग्रेस को ही आंख दिखाना शुरू कर दिया।
कांग्रेस का नेतृत्व यह स्वीकार कर रहा है कि अगर कांग्रेस कमजोर रहेगी तो क्षेत्रीय दलों का उभार उसे उठने नहीं देगा और राष्ट्रीय स्तर पर देश का मजबूत राजनीतिक विकल्प कांग्रेस नहीं बन पाएगी। इसका सीधा लाभ बीजेपी को होगा। कांग्रेस उदयपुर चिंतन शिविर में किसी दल से गठबंधन करने के बजाय खुद को मजबूत करने का फैसला लेने वाली है।
शिविर में जो सुझाव मिलेंगे उसी पर नेतृत्व अपनी रिपोर्ट तैयार करेगा। तेलंगाना में अकेले चुनाव लड़ने के राहुल गांधी के फैसले से भी इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करने के बजाय खुद को मजबूत करेगी। पार्टी नेता मान रहे हैं कि आम आदमी पार्टी, टीआरएस और टीएमसी तथा समाजवादी पार्टी जैसे दलों के उभार से कांग्रेस को नुकसान हुआ है।
जहां तक बात यूपीए की है तो इस बात को लेकर नेताओं ने तर्क दिया है कि यूपीए का गठबंधन चुनावी नतीजों के आने के बाद हुआ था। यूपीए एक में जो दल शामिल थे वह यूपीए-2 में नहीं थे। उदयपुर में 13 से 15 मई को होने वाले नव संकल्प चिंतन शिविर का फोकस 2024 का लोकसभा चुनाव है।
इसके अलावा सोनिया गांधी की तरफ से जिस बात को लेकर चिंता जताई गई है वह यह है कि कांग्रेस पार्टी की मीटिंग में आपस में जो चर्चा होती है वह बाहर चली जाती है। चिंतन शिविर में समूहों की चर्चा के दौरान प्रतिनिधियों के फोन बाहर रखवा ने की भी संभावना जताई जा रही है। कांग्रेस पार्टी के नेता ही कांग्रेस की खबरें लीक करते हैं इसको लेकर नेतृत्व चिंतित है।