राहुल गांधी ने चर्चा के पहले ही दिन कह दिया था कि प्रशांत किशोर पार्टी में शामिल नहीं होंगे क्योंकि यह पहली बार नहीं था जब उन्हें कांग्रेस में जगह देने का ऑफर किया गया था। सूत्रों का कहना है कि आठवीं बार कांग्रेस और प्रशांत किशोर की बीच बातचीत हो रही थी।
कहा जा रहा है कि कांग्रेस उनके कुछ सुझावों और मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं थी और इसी के चलते बात नहीं बन सकी। कांग्रेस का कहना है कि प्रशांत किशोर अपने लिए कांग्रेस में अहमद पटेल जैसा रोल चाहते थे, जिस पर हाईकमान में सहमति बनती नहीं दिखी। लेकिन अब एक नई बात प्रशांत किशोर कैंप की ओर से सामने आई है। कहा गया है कि राहुल गांधी की पूरी प्रजेंटेशन से बेरुखी ने भी बात को बिगाड़ने का काम किया।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पीके को चुनाव से जुड़ी जिम्मेदारी देने का प्रस्ताव रखा था और इसके लिए एंपावर्ड कांग्रेस कमिटी का गठन किया गया था। हालांकि सूत्रों की मानें तो प्रशांत किशोर या तो कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव बनना चाहते थे या फिर उपाध्यक्ष बनना चाहते थे। यानी वह पार्टी में नंबर दो की पोजीशन ही चाहते थे।
पैनल में मौजूद कई नेताओं को लगा कि पीके जो प्रजंटेशन दे रहे हैं और जो प्लान बता रहे हैं, वह स्थायी नहीं है। वह केवल कांग्रेस के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना चाहते हैं और दूसरी पार्टियों के साथ काम करना चाहते हैं। जब उनसे IPAC के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कह दिया था कि वह कंपनी के सबसे बड़े शेयरहोल्डर नहीं हैं और उनका कंपनी पर कोई नियंत्रण नहीं है।
पीके के करीबी सूत्रों के मुताबिक उन्हें लगता था कि पार्टी में सुधार लाने के लिए शीर्ष नेतृत्व कड़े फैसले नहीं ले पाएगा। वह कांग्रेस अध्यक्ष तक बदलने का प्लान बता रहे थे।
राहुल गांधी की विदेश यात्रा के बाद संदेह और गहरा गया था। राहुल गांधी कांग्रेस के एक बड़े डिसिजन मेकर होते हुए भी एक भी बैठक में नहीं पहुंचे। वह पहले से निर्धारित अपनी एक विदेश यात्रा पर चलेल गए। प्रियंका गांधी भी प्रशांत किशोर के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थीं। वह उत्तर प्रदेश के 2017 विधानसभा चुनाव को भी ध्यान में रख रही थीं। ऐसे में एकदम से बड़े परिवर्तन के लिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व तैयार नहीं हुआ।