2002 से 2018 तक चुनाव से लेकर दंगो तक का इतिहास पुराना है

वर्तमान का आईना अतीत
2002 गुजरात में गोधरा से ऊपजे दंगे याद होंगे आपको

आज उस समय के राजनैतिक स्थितियों-परिस्थितियों के पुर्नावलोकन की आवश्यकता है

2002 में गुजरात के तकरीबन नए बने मुख्यमंत्री

जो तब अविवाहित थे, सामान्य आर्थिक-समाजिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से थे, समर्पित संघ कार्यकर्ता थे और जिन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए संघ के इशारे पर आनन-फानन कानून बनाकर गुजरात के समस्त मोदीयों को सामान्य से उठाकर पिछड़ा बना दिया गया था!

नरेंद्र मोदी की सत्ता खतरे में थी!
उस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की अगुवाई वाले NDA की सरकार थी! गुजरात में तो मोदी की भाजपा सरकार थी ही!

2002 में गुजरात के विधानसभा चुनाव होने थे
और गुजरात सरकार की रिपोर्ट यह थी की गुजरात में निजीकरण के जोर और भाजपाईयों के तानाशाही रवैये से परेशान जनता बदलाव के मूड में है!

ऐसे में बिना केंद्र सरकार को विश्वास में लिए
नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया ने मिलकर गोधरा दंगो की साजिश रची! इन दंगों की स्क्रिप्ट RSS और विश्व हिंदू परिषद ने मिलकर लिखी थी और डायरेक्टर था अमित शाह!
निर्माता नरेंद्र मोदी के इन दंगों को गुजरात सरकार ने प्रस्तुत किया!

दंगे के विवरण में जाएंगे तो हमारे पास इतने अधिक तथ्य और जानकारियां हैं कि 5-7 विस्तृत पोस्ट हो जाएंगी, इसलिए राजनैतिक परिदृश्य पर ही लौटते हैं!

इन दंगों का एकमात्र उद्देश्य गुजरात में मोदी सरकार को पुन: स्थापित करना था, जिसके लिए पूरे गुजरात को आग में झोंक दिया गया!
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने मोदी को राजधर्म पर नसीहत तो दी, राजधर्म निभाने में असफल तो माना परंतु
संघ और आडवाणी के दबाव।में कोई कार्यवाही करने की जगह उन्होंने भी नरेंद्र मोदी का बचाव किया!

राज्य और केंद्र सरकारों के संयुक्त प्रयासों के बावजूद विभिन्न मामलों में अदालतों के निर्णय, कई प्रमाणिक और अप्रमाणिक बयानों, तथ्यों, साक्ष्यों से साबित होता रहा है कि दंगे पूर्वनियोजित और प्रायोजित थे!

दंगे से हुए देश व गुजरात वासियों को हुए हानि-लाभ से इतर, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात में पुन: भाजपा सरकार बनी!
न सिर्फ 2002 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा जीती, बल्कि 2007 और 2012 में भी मोदी को ढंग से कोई चुनौती तक नहीं मिली!

2014 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गुजरात छोड़ केंद्रीय राजनीति के लिए दिल्ली जाने के बाद पहली बार 15 वर्षों बाद गुजरात में भाजपा को चुनौती मिली और निकाय चुनाव भी देखें तो लगातार भाजपा की राह मुश्किल हो रही है!

गुजरात से अलग देश में समय से पहले कराए आमचुनाव 2004 में भाजपा हार गई! हालांकि तबतक दंगे में गुजरात सरकार के शामिल होने के सबूत पूरी तरह से मिटाए जा चुके थे!
जिसकी वजह से मोदी-शाह एंड कंपनी सुरक्षित थी!

2002 का आंशिक पुर्नोपयोग 2014 में भी हुआ!
एक बयान ओवैसी का आया 15 मिनट के लिए पुलिस हटा लें एक और आपत्तिजनक, ना दोहराने योग्य बयान आया हिंदूओं की आस्था श्रीराम पर!
नतीजा
अकेले यूपी बिहार से 110 सांसद भाजपा के चुने गए!

वर्तमान में वापस आएं तो

नई दिल्ली में केंद्र पे नरेंद्र मोदी विराजमान है
(जो अब विवाहित है, बहुत गरीब-लाचार परिवार से आता है, संघ दिखावे के लिए उसके खिलाफ है और जो मनमर्जी से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ कानून बनाता रहता है!)

2019 आमचुनाव उतने ही दूर हैं, जितने 2002 दंगे के समय गुजरात विधानसभा चुनाव थे!
सत्ता के खिलाफ असंतोष और नाराजगी भी 2002 से कहीं ज्यादा है!
तो 2002 से कहीं ज्यादा बड़े दंगों की जरूरत है!
इसलिए
उसी गुजरात से फिर एक बार दंगों की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है!

2002 के दंगों से आज के दृष्टिकोण से एक फायदा ये हुआ कि मुस्लिम समाज जो पूरे गुजरात में तितर-बितर फैला था, वो अब करीबन एक जगह केंद्रित हो गया है!
अत: हिंदू मुस्लिम दंगों की संभावना धूल-धूसरित हो गई, इसकी भरपाई क्षेत्रवाद से करने की कोशिश की जा रही है!
अमित शाह को गुजरात से राज्यसभा भेजने का उद्देश्य पूरा हुआ

अब हमारी-आपकी बारी है
2002 से हमने कोई सीख ली या नहीं! साबित करने का समय आ गया है!
जयहिंद जय भारत
भारत बचाओ

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