कुछ दिन तो उद्घाटन और रैलियों से परहेज़ कर लेते साहेब

कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद द्वारा कायरतापूर्ण आतंकी हमले में 40 जवानों की मौत का गुस्सा अभी शांत भी नहीं हुआ था कि आतंक के ख़िलाफ़ लड़ने का दावा करने वाली मोदी सरकार रैलियों में व्यस्त होती दिखाई देने लगी। पुलवामा हमले के बाद हुई रैलियों में प्रधानमंत्री मोदी दावा करते हैं कि हमले का बदला लिया जाएगा, सुरक्षाबलों को पूरी छूट दे दी गई है, लेकिन क्या बातें सिर्फ़ यही रुक गई हैं?

पिछले 5 सालों में क्या हम मोदी सरकार को लगातार यह कहते नहीं सुन रहे हैं कि यह नई सरकार है और जवानों को पूरी छूट दी गई है। तो कौन सा दावा गलत था, पहले वाला या जो अब किया जा रहा है? आतंकी हमले के अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन का उद्घाटन करने पहुँचे, हालाँकि इसी उद्घाटन कार्यक्रम में भाषण के दौरान उन्होंने पुलवामा हमले का कड़ा जवाब देने का आश्वासन भी दिया लेकिन उसके बाद प्रधानमंत्री ने रेल मंत्रालय, सरकार की तारीफ़ में कसीदे पढ़ने से गुरेज़ नहीं किया।

पुलवामा हमले के बाद बीजेपी द्वारा यह संदेश दिया गया कि पार्टी और सरकार जवानों की शहादत के शोक में सभी राजनीतिक कार्यक्रम फिलहाल रद्द करती है। लेकिन अगले ही दिन प्रधानमंत्री झांसी में फिर रैली करते नज़र आए, हालाँकि कहने को वह विकास कार्यक्रमों के उद्घाटन का मौक़ा था। वही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक में राजनीतिक कार्यक्रम में भाषण देते रहे, दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी प्रयागराज में सांस्कृतिक कार्यक्रम करते नज़र आए और कैबिनेट की सुरक्षा कमेटी के सदस्य और रेल मंत्री पीयूष गोयल तमिलनाडु में राजनीतिक गतिविधियों में मशगूल थे।

दूसरी तरफ़ पुलवामा हमले के बाद देश गुस्से से उबल रहा है और कई जगहों पर कश्मीरियों पर हमलों की ख़बर आ रही है। हमले के विरोध में जंतर-मंतर पर जमा हुए बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों ने यह एलान करने में कसर नहीं छोड़ी कि आतंक का मजहब होता है और वह मजहब है इस्लाम।

2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया था। सीमा पर समस्या, आतंकी हमले और जवानों की शहादत के लिए नरेंद्र मोदी हमेशा दिल्ली को ज़िम्मेदार ठहराते थे लेकिन जब से मोदी ख़ुद गुजरात से दिल्ली आए हैं, तब से उन सारी समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार नेहरू या विपक्ष क्यों है?

मोदी सरकार कहती है कि 2014 के बाद से देश में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ लेकिन इस दिनदहाड़े झूठ के पीछे क्या पठानकोट जैसे बड़े आतंकी हमले का सच छुपाया जा सकता है? क्या नगरोटा में जवानों पर हुए हमले को झुठलाया जा सकता है? क्या उरी में सेना कैंप पर हुआ हमला भुलाया जा सकता है या फिर पुलवामा में 40 बहादुर जवानों पर आतंकी हमले को यह सरकार झुठला सकती है?

आँकड़े कहते हैं कि पिछले 5 सालों में बड़ी संख्या में जवान शहीद हुए हैं। आतंकी हमलों की घटनाएँ पहले से ज़्यादा हुई हैं। 2014 तक देश की आंतरिक समस्याओं के लिए अगर केंद्र सरकार ज़िम्मेदार थी तो 2014 से 2019 के बीच हो रही इन घटनाओं के लिए कौन ज़िम्मेदार है? जिस दिन यह सवाल उठने लगे, उस दिन सरकार के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here