
देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। इसके साथ ही पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई राज्यसभा के सदस्य बन गए।
रंजन गोगोई चीफ जस्टिस रहगे हुए और पहले भी काफी चर्चा में रहे हैं।
चीफ जस्टिस बनने से पहले उन्होंने अपने साथी जजो के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके देश के लोकतंत्र और केंद्र सरकार पर सवाल उठाया था जबकि 2016 में केरल के चर्चित सौम्या हत्याकांड पर कोर्ट के फैसले के खिलाफ टिप्पणी करने पर जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत जज मार्कंडेय काटजू को अदालत में तलब कर लिया था। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई सेवानिवृत न्यायमूर्ति सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ हो और उसने बहस की हो।
गोगोई ने चीफ जस्टिस रहते हुए कई अहम फैसले को सुनाया इसमें सालों से लंबित अयोध्या विवाद एक महत्वपूर्ण केस था इसके अलावा गोगोई ने असम में NRC लागू करवाने का काम किया जबकि लोकसभा चुनाव से पहले देश के राजनीति का केंद्र बना राफेल केस पर भी जस्टिस गोगोई ने ही सुनवाई की थी और विपक्षी दलों को झटका देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राफेल केस में क्लीन चिट दिया था।
जस्टिस गोगोई के राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोयन कांड लोग सोशल मीडिया पर अपनी बात रखते हुए न्यायपालिका की प्रासंगिकता व विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रहे हैं।
जस्टिस गोगोई 3 अक्टूबर 2018 को भारत के 46वें चीफ जस्टिस बने। गोगोई का कार्यकाल लगभग 13 महीने का रहा था। वह असम के मुख्यमंत्री रहे केशब चन्द्र गोगोई के बेटे हैं। उन्होंने 1978 में वकालत शुरु की और इसके बाद 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के स्थाई जज बने थे। 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 23 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए।
सोशल मीडिया पर कई लोग इस मनोयन और राफेल विवाद को जोड़कर टिप्पणी कर रहे हैं।