सीएजी रिपोर्ट में रफाल ऑफसेट सौदे की जांच शामिल नहीं किए जाने की जानकारी सामने आने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है।
राहुल गांधी ने एक खबर का हवाला देते हुए ट्वीट किया, ‘राफेल (सौदे) में भारतीय खजाने से पैसे की चोरी हुई।’ इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी के ‘सच एक, रास्ते अनेक’ कथन का भी उल्लेख किया।
उन्होंने जिस खबर का हवाला दिया उसके मुताबिक, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने रक्षा ‘ऑफसेट’ अनुबंधों को लेकर अपनी ‘परफॉर्मेंस ऑडिट’ रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है जिसमें राफेल विमानों की खरीद के संदर्भ में किसी ‘ऑफसेट’ अनुबंध का उल्लेख नहीं है।
मालूम हो कि भारत और फ्रांस के बीच हुए रफाल सौदे की विपक्ष द्वारा आलोचना की जाती रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस सौदे में घोटाला होने का आरोप लगा चुके हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया था।
कांग्रेस रफाल करार में बड़े पैमाने पर अनियमितता के आरोप लगाती रही है. वह विमान निर्माण के लिए दासो एविएशन के ऑफसेट पार्टनर के तौर पर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की जगह अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस डिफेंस के चयन पर भी मोदी सरकार पर हमलावर रही है।
14 दिसंबर, 2018 को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रफाल सौदे में जांच की मांग वाली सभी याचिकाएं ख़ारिज कर दी थीं और कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग को भी ठुकरा दी थी।
इसके बाद 21 फरवरी, 2019 को रफाल सौदे को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया था।
रफाल सौदे की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली अपनी याचिका खारिज होने के बाद, पूर्व मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ-साथ वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर फैसले की समीक्षा की मांग की थी।
सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 रफाल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे।
इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. 26 जनवरी 2016 को जब फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भारत आए थे तब इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।
‘द हिंदू’ अख़बार ने फरवरी, 2019 में दावा किया था कि फ्रांस की सरकार के साथ रफाल समझौते को लेकर रक्षा मंत्रालय के साथ-साथ पीएमओ भी समानांतर बातचीत कर रहा था।
हालांकि चार मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफ़नामा दाख़िल कर केंद्र की मोदी सरकार ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा सौदे की निगरानी को समानांतर बातचीत या दख़ल के तौर पर नहीं देखा जा सकता।