
2019 की लोकसभा में कांग्रेस की करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
राहुल ने इस्तीफे के बाद कार्यकर्ताओं के नाम लिखे अपने संदेश में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर करारा हमला बोलते हुए कहा कि एक वक्त ऐसा भी आया जब वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के खिलाफ बिल्कुल अकेले खड़े थे।
अपने 4 पेज के सन्देश में राहुल ने लिखा ‘मैंनें व्यक्तिगत तौर पर प्रधानमंत्री, आरएसएस और उन संस्थानों के खिलाफ लड़ाई लड़ी जिसे उन्होंने नियंत्रण कर रखा है। मैंने यह लड़ाई इसलिए लड़ी क्योंकि मैं भारत से प्यार करता हूं। मैंने यह भारत के आदर्शों के रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। ऐसे वक्त में मैं बिल्कुल अकेले खड़ा था और मैं उस पर गर्व करता हूं।
राहुल द्वारा खुद को अकेले बताने वाला लाइन कही ना कही कांग्रेस के बड़े नेताओं के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है क्योंकि राहुल के समर्थक कार्यकर्ता इस बात को लेकर पार्टी के बड़े नेताओं को निशाने पर लेंगे।
राहुल ने कहा- मैंने अपने कार्यकर्ता और पार्टी सदस्यों, महिला और पुरुषों से काफी धैर्य और समर्पण की भावना सीखी है।
इससे पहले लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस सिर्फ 52 सीटों पर सिमट कर रह गई जबकि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के 303 सीटों का प्रचंड बहुमत लाया। इस बाद राहुल ने इस परिणाम का जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस कार्यसमिति की 25 मई की बैठक में अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी।
उन्होंने सीडब्ल्यूसी से भी कहा था कि वे नए अध्यक्ष की नियुक्त कर लें। लेकिन, पार्टी की सर्वोच्च निर्धारक ईकाई ने उनकी पेशकश को खारिज करते हुए एक प्रस्ताव पास किया और अध्यक्ष पद पर उन्हें ही रहने को कहा गया पर राहुल अपने इस्तीफे के फैसले पर अडिग रहे , इसके बाद राहुल को मनाने का दौर चला पर इस्तीफा का मन बना चुके राहुल ने अपना फैसला वापस ना लिया। 25 मई के बाद जब भी उन्हें मनाने की कोशिश की गई उन्होंने हर बार अपने फैसले पर अडिग रहने की बात दोहराई।