राजस्थान में पायलट-गहलोत के विवाद का हुआ हल, वेणुगोपाल के साथ आए दोनों नेता

राजस्थान में लंबे समय से चल रहे सियासी संग्राम पर विराम लग गया है। गहलोत पायलट एक मंच पर आ गए हैं। राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल भारत जोड़ो यात्रा समन्वय समिति की बैठक लेने जयपुर आए।

इस दौरान वेणुगोपाल ने दोनों नेताओं को एक मंच पर लाकर मीडिया की मौजूदगी में कहा कि यह है राजस्थान। हम सब एक हैं। इस दौरान गहलोत और पायलट ने भी एकजुट होने का संदेश दिया। राजस्थान में लंबे समय से चल रहे सियासी मसले पर विराम लग गया है। अगले महीने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान आ रही है। इससे पहले प्रदेश का सियासी मसला सुलझना कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत हैं। केसी वेणुगोपाल ने बैठक से पहले दोनों नेताओं से बंद कमरे में बात की तथा सियासी मसले का हल निकाला। इसके बाद सभी नेताओं ने मीडिया की मौजूदगी में एकजुटता का संदेश दिया।

राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कांग्रेस के बीच अंतर्कलह की स्थिति थी। सचिन पायलट का दावा था कि 2018 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने जीतकर सरकार बनाई। उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था। कांग्रेस ने अशोक गहलोत पर भरोसा जताते हुए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था। इसके बाद से राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद चल रहा था। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच गुटबाजी के चलते राजस्थान में कांग्रेसनीत सरकार अस्थिर भी हुई। वही प्रदेश की राजनीति में खुले मंच से नकारा, निकम्मा और गद्दार जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी किया गया।

राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने 2020 में अपनी ही सरकार से बगावत करते हुए 19 विधायकों के साथ मानेसर में डेरा डाल लिया था। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार अस्थिर हो गई थी। बाद में कांग्रेस हाईकमान की समझाइश पर पायलट वापस कांग्रेस में लौट आए। लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच दूरियां बढ़ गई। दोनों नेताओं के समर्थक मंच से एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने लगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को नकारा, निकम्मा करार देते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद से ही राजस्थान में विवाद की स्थिति थी।

राजस्थान में 25 सितंबर को प्रदेश प्रभारी अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे बतौर पर्यवेक्षक जयपुर आए। इस दौरान विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस में गहलोत समर्थित विधायकों ने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करते हुए मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर विधायक दल की बैठक के समानांतर बैठक आहूत कर बगावत कर दी। गहलोत सर्मथक 92 विधायकों ने अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंप दिए। इस मामले में मंत्री शांति धारीवाल, मंत्री महेश जोशी और आरटीडीसी के चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को अनुशासनहीनता का नोटिस जारी किया गया। पर्यवेक्षक अजय माकन मलिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस हाईकमान को लिखित में रिपोर्ट भी दी। जिन नेताओं को नोटिस जारी किया गया था। उन्होंने कांग्रेस हाईकमान को नोटिस का जवाब भी दिया।

पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक निजी चैनल को आक्रामक साक्षात्कार देते हुए सचिन पायलट को गद्दार करार दिया था। उन्होंने भाजपा पर सरकार गिराने का आरोप लगाते हुए पायलट और भाजपा की मिलीभगत के आरोप लगाए थे। इसके बाद राजस्थान की सियासत में तूफान उठ गया था। माना जा रहा था कि राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का विवाद चरम पर पहुंच गया है। अगर इसका सियासी हल नहीं निकाला गया तो सीधे तौर पर कांग्रेस को नुकसान होगा। राजस्थान में अगले महीने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आ रही है। वही अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं।

राजस्थान में 25 सितंबर को जो कुछ घटित हुआ उसे लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस हाईकमान से माफी मांगी थी। दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात कर अशोक गहलोत ने राजस्थान के सियासी मसले पर सोनिया गांधी से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी। इसके साथ ही पार्टी अशोक गहलोत को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहती थी। लेकिन अशोक गहलोत में अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया था।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 3 दिसंबर को झालावाड़ के रास्ते राजस्थान में प्रवेश कर रही है। माना जा रहा था कि राजस्थान कांग्रेस में चल रही गुटबाजी का असर यात्रा पर होगा। कांग्रेस ने अशोक गहलोत के बयान के बाद केसी वेणुगोपाल को राजस्थान भेजने का फैसला किया। पार्टी हाईकमान ने संदेश देकर केसी वेणुगोपाल को राजस्थान भेजा। उम्मीद थी कि केसी वेणुगोपाल दोनों नेताओं को बैठाकर पार्टी हाईकमान का संदेश देंगे। इसके बाद राजस्थान का सियासी मसला हल हो जाएगा। राहुल गांधी भी इंदौर में संवाददाता सम्मेलन के दौरान साफ कर चुके थे कि राजस्थान में कोई विवाद नहीं है। अब राजस्थान कांग्रेस में पायलट गहलोत के समझौते के बाद नई ऊर्जा का संचार होगा। पार्टी एकजुट होकर मंच पर दिखेगी। सीधे तौर पर राजस्थान में कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा।

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