
बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को गुजरात के जामनगर की एक अदालत ने लगभग तीन दशक पुराने मामले में गुरुवार को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
पूर्व आईपीएस अधिकारी भट्ट पर हिरासत में एक कैदी की मौत का मामला था जिस पर कोर्ट ने फैसला सुनाया।
बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने 30 साल पुराने एक मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों का परीक्षण करने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की थी जिस पर 12 जून को सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया था।
भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मामले में एक उचित और निष्पक्ष फैसले तक पहुंचने के लिए इन 11 गवाहों का परीक्षण जरूरी है।
हालांकि, गुजरात पुलिस ने उनकी इस याचिका का सख्त विरोध करते हुए न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ से कहा कि यह मामले के फैसले में विलंब करने का एक हथकंडा है।
भट्ट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने दलील दी कि मामले में निष्पक्ष सुनवाई के लिए इन गवाहों का परीक्षण बहुत जरूरी है। इस पर दूसरे वकील ने अदालत से कहा कि यह मामला करीब तीन दशक तक खींचा गया है और चूंकि शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ इस तरह की एक याचिका पर 24 मई को आदेश सुना चुकी है इसलिए उनकी की याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
अभियोजन के अनुसार संजीव भट ने एक सांप्रदायिक दंगे के दौरान एक सौ से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया था और इन्हीं में से एक व्यक्ति की रिहाई होने के बाद अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। संजीव भट्ट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित किया गया था और बाद में अगस्त, 2015 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
बर्खास्त IPS भट्ट PM मोदी के खासे आलोचक माने जाते हैं और मोदी के PM बनने से पहले से ही वो लगातार उनके खिलाफ बोलते रहे थे और PM बनने और 2015 में खुद बर्खास्त होने के बाद वो और मुखर हो गए थे।