
राष्ट्रीय मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भले ही बीजेपी की सरकार न बनने पर नैतिकता की दुहाई दे रहा हो लेकिन राजनीति में वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए सब जायज है पिछले एक महीने से बहस छिडी हुई है की आखिर कांग्रेस की विचारधारा शिवसेना को कैसे स्वीकार कर सकती है? सवाल सही है लेकिन उसके काउंटर में एक और सवाल है कि आखिर बीजेपी को पीडीपी जो आये दिन पाकिस्तान का राग अलापती है वो विचारधारा कैसे स्वीकार हो गयी वही हरियाणा जेजेपी जिसके नेता दुष्यंत कहते हैं कि गुजरात वाले क्या राष्ट्रवाद सिखायेगे जो आर्मी में जाने से डरते हैं? उनकी विचारधारा को बीजेपी ने जैसे स्वीकार किया शायद उसी तरह कांग्रेस शिवसेना की विचारधारा भी तो स्वीकार कर सकती है
अब सवाल ये है कि क्या ये पहली बार कांग्रेस सेना का गठबंधन है?

नही, ये पहली बार नही हो रहा है सेना व कांग्रेस के पुराने ताल्लुकात रह चुके हैं इससे पहले 1967 में पहली बार शिवसेना की चुनावी रैली में कांग्रेस नेता रामाराव आदिक पहुचे व उनको समर्थन भी दिया उसके बाद बाल ठाकरे ने आपातकाल के समय भी कांग्रेस का खुलकर समर्थन किया, आपको बता दे कि इससे पहले 1977 के आम चुनाव तथा 1980 के विधानसभा चुनावो में कांग्रेस के समर्थन में सेना ने प्रचार किया था उसके बाद में 2007 व 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के समय भी शिवसेना ने कांग्रेस का साथ दिया था