कुछ और लिखने के लिए FB पे आए लेकिन
यहां कइयों को पार्टी नहीं, नेता विशेष की तरफदारी और समर्थन करते देख मन ख़राब हो गया!
एक बात सभी अच्छी तरह से समझ लो
(विशेषकर वो जो चीन व अन्य बाद में स्वतंत्र हुए देशों से भारत की तुलना करते हैं)
जब हम-तुम वोट अपनी जाति धर्म वाले को देते हैं तो अपरोक्ष रुप से नेताओं को जाति-धर्म की राजनीति करने के लिए प्रेरित करते हैं!

जब हम-तुम समर्थन अपने क्षेत्र वाले का करते हैं तो क्षेत्रवादी, अलगाववादी ताकतों के हाथ मज़बूत करते हैं!

जब हम-तुम देश के लिए सही व्यक्ति को न चुनकर, अपने व्यक्तिगत लाभ के अनुसार प्रतिनिधि चुनते हैं, तो व्यक्तिवादी राजनीति का सृजन करते हैं!

एक तथ्य है जिसे जानते सब हो, समझते कोई भी नहीं…
डॉ भीमराव अंबेडकर ने अकेले दलितों के उद्धार के लिए जितना किया है
बाकी सबका मिलाकर उतना तो क्या, उसका 10वां हिस्सा भी नहीं होता!
#ऐसा_क्यों
क्योंकि अंबेडकर व्यक्तिवादी, जातिवादी, क्षेत्रवादी राजनीति नहीं करते थे!
अंबेडकर की क्षमता, सामर्थ्य और कद सभी स्वघोषित दलित हितैषियों और दलित नेताओं से कहीं बड़ा था और वो दलितों के लिए अलग राजनैतिक पार्टी बनाने/चलाने में ज्यादा सक्षम थे!
लेकिन उनके लिए देश पहले था, इसलिए उन्होंने देश के लिए सही पार्टी कांग्रेस को चुनकर दलित हितों के लिए काम किया!
उनका उद्देश्य था कि दलित/पिछड़े भी समाज की मुख्यधारा से जुड़कर राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान दें! ना कि उन्हें देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बनाना चाहते थे!

आज के टुच्चे नेता मायावती, रामविलास पासवान, नरेंद्र मोदी, शिवराज खुद तो आगे बढ़ रहे लेकिन दलितों को हमेशा दलित और पिछड़ा ही रखना चाहते हैं, इसलिए दलित राजनीति की परिपाटी को कायम रखना चाहते हैं!
इसलिए ये दलित-पिछड़ों को मुफ्तखोरी और अकर्मण्यता की ओर धकेल रहे हैं!

क्रमश: ऐसा ही ब्राह्मण मंच, क्षत्रिय संगठन, वैश्य सभाएं, मुस्लिम दल भी कर रहे हैं!
फैसला तुमने-हमने करना है, देश पहले है या अन्य!
#जयहिंद

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