
मध्यप्रदेश की गुना लोकसभा सीट सिंधिया परिवार का गढ़ है। ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से जीतते आए हैं। पिछले चार बार से गुना से जीत रहे कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य इस बार भी मैदान में हैं। भाजपा ने यहां से डॉ. केपी यादव को मैदान में उतारा है। केपी यादव पहले कांग्रेस में रहे हैं। ज्योतिरादित्य के करीबी भी रहे, लेकिन विधानसभा चुनाव में मुंगावली से टिकट न मिलने पर भाजपा में चले गए थे। 48 साल के ज्योतिरादित्य मनमोहन सरकार में सात साल तक सूचना एवं प्रौद्योगिकी, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के राज्यमंत्री रह चुके हैं। संसद में ज्योतिरादित्य की उपस्थिति 76 फीसदी रही है।
सिंधिया परिवार ने गुना सीट से ही चुनाव लड़ने की शुरुआत की। अब तो कहा जाता है कि जिसके नाम के पीछे सिंधिया होगा, वही जीतेगा, पार्टी चाहे जो हो। विजयाराजे, माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य ने अपना पहला चुनाव यहीं से लड़ा। 1957 में विजयाराजे कांग्रेस से जीतीं तो उनके बेटे माधवराव 1971 में पहली बार जनसंघ के टिकट पर लड़े और जीते। वर्ष 2002 में माधवराव के निधन के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य ने सियासी पारी की शुरुआत 2002 में हुए उपचुनाव में इसी सीट से की। तब से लगातार जीत रहे हैं। इस सीट से कांग्रेस 9 बार जीत दर्ज कर चुकी है। भाजपा यहां से तभी जीती जब विजयाराजे सिंधिया उसके टिकट पर लड़ीं।
सिंधियाजी की पत्नी प्रियदर्शिनी राजे पूरी कमान संभाले हुए हैं। खुद ज्योतिरादित्य बहुत सक्रिय हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे पहले चुनाव को लेकर सिंधिया परिवार में इतनी सक्रियता कभी नहीं दिखी। ज्योतिरादित्य और उनकी पत्नी 200 से ज्यादा चुनावी सभाएं कर चुके हैं। प्रचार के दौरान प्रियदर्शिनी ने अपने पति से ज्यादा समय दिया। ज्योतिरादित्य की राह लोकेंद्र सिंह धाकड़ ने कुछ आसान की है। वे इस सीट पर बसपा से प्रत्याशी थे, लेकिन ऐन पहले कांग्रेस को समर्थन देते हुए बैठ गए।