
भारत आज विश्व की बड़ी IT शक्ति है , भारत के लोग डिजिटल दुनिया मे विश्व मे बहुत आगे हैं पर जिस देश को गुलामी और गरीबी ने तोड़ कर रख दिया था वो देश आज डिजिटल ताकत कैसे बना ये इतिहास के पन्नो में है। जहां एक राजनीति से दूर रहने वाला एक व्यक्ति भारत का PM बनता है और फिर दुनिया भर में भारत के नए रूप को स्थापित कर देता है। जब उसके आधुनिक सोच का विरोध होता है तो वो अपने जिद्द पर आधुनिकता को आगे बढ़ाता है और सफल होता है। हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की।
दुनिया के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्रियों की यदि लिस्ट निकाली जाए तो, संभवत: यह शख्स एकमात्र ऐसा युवा होगा, जो महज 40 साल की उम्र में दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बन गया। भारत में तो इतनी कम उम्र का कोई भी पीएम कभी बना ही नहीं।
कभी देश के सबसे कद्दावर, ताकतवर और लोकप्रिय राजनीतिक परिवार के इस लड़के ने सियासत में चमकने का नहीं, बल्कि आसमान में उड़ते हवाई जहाजों को उड़ाने का हौंसला पाला था, लेकिन उसकी नियति उसे राजनीति में ले आई, और जब वह राजनीति में उतरा तो, उसने पूरे भारत के उस नक्शे की नींव रखी, जिससे आज पूरा भारत ‘डिजिटल इंडिया’ के सपने को साकार होता देख रहा है। इस शख्स का नाम था राजीव गांधी।
जी हां, इस देश में जब भी आईटी का इतिहास लिखा जाएगा तो हर पन्ने में देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिया जाएगा। दरअसल राजीव गांधी के दिमाग में भारत को सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट की दुनिया से जोड़ने का जुनून सवार था।
100 करोड़ भारतीयों के नेता के रूप में इस भारतीय नेता की शानदार शुरुआत किसी भी परिस्थिति में उल्लेखनीय मानी जाती है। यह इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि वे उस राजनीतिक परिवार से संबंधित थे जिसकी चार पीढ़ियों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एवं इसके बाद भारत की सेवा की थी, इसके बावजूद गांधी राजनीति में अपने प्रवेश को लेकर अनिच्छुक थे एवं उन्होंने राजनीति में देर से प्रवेश भी किया।
यह बड़ी गौर करने वाली बात है कि राजीव गांधी की बचपन से ही सियासत में कोई दिलचस्पी नहीं थी, और एक नेता की तरह वे कभी भी साहित्य, दर्शन,राजनीति में रुचि नहीं रखते थे। उनके सहपाठियों के अनुसार उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें थी भी नहीं, बल्कि विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं। यही वजह है कि जब दुर्घटनावश जब वे राजनीति में आए तो उनकी यही पढ़ाई देश के लिए काम आई और उन्होंने भारत को कंप्यूटर की दुनिया से जोड़ दिया।
भले ही राजनीति में राजीव गांधी की रुचि नहीं थी, लेकिन उनका प्रबंधन इतना शानदार था कि उनके प्रबंधन को देखकर कांग्रेस के खांटी और दिग्गज भी हतप्रभ थे। बात नवंबर 1982 की है, जब भारत ने एशियाई खेलों की मेजबानी की थी, स्टेडियम के निर्माण एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने संबंधी वर्षों पहले किये गए वादे को पूरा किया गया था। जब राजीव गांधी को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि सारे काम समय पर पूर्ण हों एवं यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी रूकावट एवं खामियों के खेल का आयोजन किया जा सके। उन्होंने दक्षता एवं निर्बाध समन्वय का प्रदर्शन करते हुए इस चुनौतीपूर्ण कार्य को संपन्न किया।
भारत आज जिस डिजिटल इंडिया के सपने को साकार कर पाया है, वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ही देन है। यदि पीएम राजीव देश में कंप्यूटर, संचार साधनों की नींव नहीं रखते तो आज देश डिजिटल इंडिया नहीं बन पाता।
राजीव गांधी उस दूरदृष्टि के नेता थे कि उन्होंने 30 साल आगे के भारत को देख लिया था। वे उस समय से ही भारत को आईटी का सुपर पावर बनाना चाहते थे। कमाल था कि जब उन्होंने कंप्यूटर, इंटरनेट और फोन की बातें करना शुरू की थी, तो उनके समकालीन उन पर हंसते थे और उनकी आलोचना करते थे।
राजीव गांधी ने अपने इस सपने को साकार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के दिग्गज सैम पित्रोदा को भारत बुलवाया था और सैम ने देश को सस्ते टेलीफोन की तकनीक दी और इस तरह राजीव का सपना पूरा होना शुरू हुआ और भारत में सस्ते लैंड लाइन फोन लगना शुरू हुआ।
10 साल भारत रहे सैम राजीव के काम से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अमेरिका की नागरिकता छोड़ भारत की नागरिकता ले ली। सैम ने उस दौरान टेलीफ़ोन, तकनीक मिशन, टीकाकरण, साक्षरता, पेयजल, दुग्ध उत्पाद शानदार प्रोजेक्ट्स को पूरा किया था।
दुर्भाग्य से बहुत ही कम उम्र में देश के इस युवा स्वप्नदृष्टा की मौत हो गई। आज दुनिया में भारत जो आईटी का सिरमौर बना है और डिजिटल हो रहा है उसमें राजीव गांधी का महत्वपूर्ण योगदान है।
राजीव के सपने बहुत बड़े थे वो भारत के हर हिस्से को वो जोड़कर भारत को विश्व की सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनाने का सपना देखते थे तब ही उन्होंने अपने कार्यकाल में हर उस क्षेत्र पर ध्यान दिया जिससे देश एक शक्तिशाली राष्ट्र बने।
देश का दुर्भाग्य था कि अपने विजन से भारत को विश्व मे नई पहचान दिलवाने वाला नेता अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत करने से पहले ही दुनिया को अलविदा कह कर चला गया।
राजीव गांधी के जाने का नुकसान देश और उनके परिवार के साथ साथ उनकी पार्टी को भी हुआ।