1948 में गांधी जी की हत्या के बाद प्रतिबंध झेल चुकी आरएसएस पर फिर एक बार प्रतिबंध लगाए जाने की मांग तेज हो चुकी है। 1948 में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आरएसएस को गांधी जिंक हत्या का जिम्मेदार मानते हुए प्रतिबंध लगाया था। अब 2019 में फिर से आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठी है और इस बार यह मांग सिख संगठन अकाल तख्त ने किया है।
सिख संगठन अकाल तख्त के प्रमुख ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। सोमवार को तख्त प्रमुख ने कहा, आरएसएस जिस तरह से काम कर रहा है, इससे तो ये साफ है कि वह देश को बांट देगा। अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अमृतसर में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि हां इसपर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि आरएसएस जो कुछ भी कर रहा है, वह देश में भेदभाव की लकीर खींच रहा है। जो आरएसएस के नेता बयान देते हैं, वह देश के हित में नहीं हैं।’
जब उनसे पूछा गया कि वर्तमान सरकार आरएसएस को मानती है और कई मौके पर राय भी लेती है तो उन्होंने कहा कि ‘अगर ऐसा है तो यह देश के लिए ठीक नहीं है। यह देश को नुकसान पहुंचाएगा और उसे बर्बाद कर देगा।’
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि जब सिख धर्म गुरुओं और आरएसएस की विचारधाराओं के बीच ऐसा मतभेद देखने को मिल रहा है। बीते हफ्ते शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) प्रमुख गोविंद सिंह लोंगवाल ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवन के ‘हिंदू राष्ट्र’ वाले बयान की निंदा की थी। ये बयान मोहन भागवत ने दशहरे के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान दिया था।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि आरएसएस पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की गई हो इससे पहले भी कई संगठनों और कई लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर आरएसएस पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की पूर्व में भी की है। अब देखना है कि अकाल तख्त अपने इस मांग को किस तरह से आगे बढ़ाता है।