
मध्यप्रदेश में कांग्रेस में हुई बगावत के बाद भारतीय जनता पार्टी सरकार बनाने का मंसूबा पाले हुए हैं मगर कांग्रेस भी अपनी सरकार को बचाने के लिए हर संभव लड़ाई लड़ रही हैं और मैदान छोड़ने के लिए तैयार नहीं है यही कारण है कि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायक कांग्रेस से इस्तीफा देने की पेशकश किए हैं तो सरकार पर मंडराते खतरा को देख कांग्रेस अब भारतीय जनता पार्टी के उन कमजोर कड़ियों को तलाशने में लगी हुई है जिससे कांग्रेस अपने बहुमत को ना गवाएं। कांग्रेस की कोशिश है कि अब भाजपा को उसकी ही कमजोर कड़ी के जरिए मात दी जाए।
दरसल विधायक नारायण त्रिपाठी के बगावती और उग्र तेवरों ने भाजपा की मुसीबत बढ़ानी शुरू कर दी है। बागी तेवर वाले त्रिपाठी ने तो यहां तक कह दिया है कि ‘राज्य की कमलनाथ सरकार को बहुमत है और लोकतंत्र की हत्या करने की कोशिशें चल रही हैं।’
त्रिपाठी ने सीधे तौर पर भाजपा का तो नाम नहीं लिया, मगर इशारों इशारों में भाजपा पर हमला जरूर किया है।
साथ ही भाजपा छोड़ने के सवाल पर उन्होंने मौन साध लिया है।
भाजपा विधायक त्रिपाठी के पिछले दिनों की गतिविधियों पर ध्यान दें तो वह लगातार मुख्यमंत्री कमलनाथ के संपर्क में हैं और मुख्यमंत्री आवास पर बगैर किसी रोक-टोक के आ-जा रहे हैं। वह अपने इरादों को भी समय-समय पर जाहिर कर चुके हैं। बजट सत्र में वह भाजपा विधायकों के साथ थे, मगर जब भाजपा विधायक राजभवन गए तो त्रिपाठी उनके साथ नहीं थे।
राज्य के सियासी गणित पर गौर करें तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या 230 है। दो स्थान रिक्त हैं और छह विधायकों के इस्तीफे मंजूर किए जा चुके हैं। वहीं कांग्रेस के 16 विधायकों के इस्तीफे लंबित हैं। भाजपा को उम्मीद इस बात की है कि उसके पास 107 विधायक हैं और वह सदन में बहुमत में है। दूसरी ओर कांग्रेस भी जोर लगाए हुए है और भाजपा के विधायकों को तोड़ने की कोशिश में है।
कांग्रेस के 16 विधायकों का इस्तीफा मंजूर हो जाता है तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या 92 हो जाएगी और समर्थन देने वाले दो बसपा, एक सपा और चार निर्दलीय विधायकों को मिलाकर कुल 99 विधायक कांग्रेस के पास होते हैं। वही भाजपा के एक विधायक त्रिपाठी के बगावती तेवरों के चलते भाजपा का आंकड़ा 106 नजर आता है।
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा के सात-आठ विधायकों को तोड़ लिया जाए तो स्थिति बदल सकती है और कांग्रेस इसी कोशिश में लगी है कि किसी तरह भाजपा के सात-आठ विधायकों को तोड़कर उसे कमजोर किया जाए और विधायकों की संख्या 95 और 98 के बीच ला दी जाए।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, भाजपा में भी असंतुष्ट विधायकों की कमी नहीं है। पिछले दिनों विधानसभा में मत विभाजन के दौरान भाजपा के दो विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल बगावत कर कांग्रेस के पक्ष में मतदान कर चुके हैं। इस घटना के बाद से कांग्रेस ने भाजपा के कई असंतुष्ट विधायकों से करीबियां बढ़ाई है। इसी के चलते कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा ने अगर उसे कमजोर किया है तो वह भी भाजपा को मात दे सकती है।
इससे पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पंकज शर्मा ने भी दावा किया था कि बीजेपी 9 विधायक कांग्रेस का समर्थन करेंगे। ऐसे में अगर बीजेपी में टूट होती है तो निश्चित तौर पर इसका फायदा कमलनाथ सरकार को मिल जाएगा।