देश मोदी और हम
आज हमारे घर के सदर हम हैं। पहले पिताजी, उनसे पहले दादाजी थे।
हमें भी लगता है कि बहुत कुछ ऐसा है जो उस समय में हमारे बाप-दादा को आने वाले समय को सोच कर करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने नहीं किया।
उनकी अपनी सोच और सिद्धांत थे, उसके हिसाब से उन्होंने निर्णय लिए और निभाये।
इसके बावजूद
उन फैसलों के लिए हम आज उन्हें गालियां नहीं देते, कोसनो से नहीं नवाजते।
बल्कि
अब हमें जिम्मेदारी मिली है तो… उनके किए जिन कार्यों, जिन निर्णयों से हमें सहूलियत होती है, उसके लिए उनके शुक्रगुज़ार होते हैं।
किसी बात की कमी लगती है तो खुद के दम पर पूरा करते हैं। जिन फैसलों से असहमति होती है उसे खुद के हिसाब से बदलते हैं।
यही सोच देश के प्रति भी होनी चाहिए, हमारी है।
लेकिन
परिधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाप से पता नहीं क्या असहमति रही के घर छोड़कर भाग लिए। उनके अंदर मर्दानगी और जीवटता का आभाव इस कदर रहा की चीजों को अपने अनुसार ढालने के बजाय उससे मुंह छिपाकर निकल भागे।
और तो और
अकर्मण्यता इस कदर हावी रही कि बाप के मरने के बाद भी वापस घर जाकर चीजें बदलने की हिम्मत नहीं जुटा सके।
वर्तमान में भी चीज़ें और स्वभाव बिल्कुल वही है हमारा भी और मोदी का भी
अत: देश के लिए भी मोदी पुर्ववर्तियों को कोसने, समय असमय जगह-जगह रोने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर सकते, अब तक नहीं कर पाए।
अब फैसला आपको-हमको लेना है कि ऐसे अकर्मण्य और नामर्द इंसान को दोबारा सत्ता देना है कि नहीं।