राजस्थान में बीजेपी के लिए इस बार स्थितियां दो तरह से खिलाफ हैं। पहला, कांग्रेस का ‘न्याय’ बीजेपी के ‘राष्ट्रवाद’ पर भारी पड़ रहा है। दूसरा, राज्य में पिछले चार-पांच चुनावों के दौरान यह ट्रेंड रहा कि जिसकी राज्य में सरकार बनी, लोकसभा चुनाव में भी उसे ही ज्यादा सीटें आईं। इस लिहाज से राजस्थान लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के लिए बेहतर संभावनाएं दिखती हैं।
वैसे, राफेल में भ्रष्टाचार का मामला भी यहां बीजेपी के खिलाफ गया है और इसके अलावा भोपाल से बीजेपी उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर की 26/11 के आतंकवादी हमले में शहीद हेमंत करकरे के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के कारण भी लोगों में नाराजगी है। राज्य में पहले चरण का मतदान 29 अप्रैल को होना है जिसमें प्रदेश की 25 में से 13 सीटें दांव पर होंगी। बाकी बची 12 सीटों पर 6 मई को वोटिंग होनी है।
राज्य की लगभग सभी सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। पहले चरण की 13 सीटें मुख्यतः मध्य और दक्षिण-पश्चिम राजस्थान की हैं और इनमें से कई हाइ प्रोफाइल मुकाबले भी हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की सभी 25 सीटें जीती थीं, और दो-तीन सीटों को छोड़कर ज्यादातर पर जीत का अंतर 50 हजार से ज्यादा था। लेकिन विधानसभा की हार ने पार्टी के लिए यहां बहुत कुछ बदल दिया है।
विधानसभा चुनाव में मिले वोटों को देखें तो बीजेपी अब सिर्फ 13 सीटों पर बढत में है। यानी कांग्रेस सिर्फ एक सीट से बीजेपी से पीछे है और राजस्थान में पिछले चार-पांच चुनाव का हाल रहा है कि जो पार्टी विधानसभा चुनाव में जीतती है, लोकसभा चुनाव में भी उसे ज्यादा सीटें मिलती हैं। विधानसभा चुनाव के परिणाम और इस ट्रेंड को देखा जाए तो राजस्थान में कांग्रेस काफी बेहतर स्थिति में दिखती है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के एक दर्जन बागियों ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता था, और उस अनुभव को देखते हुए पार्टी ने इस बार उन सभी को साथ रखा है। राज्य में 12-13 लोकसभा सीटों का फैसला गुज्जर समुदाय करते हैं और इस बार इनमें भी बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं है।
पहले 13 सीटो में से कांग्रेस 9 सीटो पर एकतरफा बढत बनाई हुई है और जो माहौल नजर आ रहा है वो स्पष्ट कर रहा है कि बीजेपी की राजस्थान में राह आसान नही है