देश में डर का माहौल खत्म होना चाहिए, सरकार आर्थिक स्थिति पर गंभीर नही – डॉ मनमोहन सिंह

देश की अर्थव्यवस्था लगातार थपेड़े खा रही है और शुक्रवार को जारी आंकड़े बताते हैं कि यह गर्त में पहुंच चुकी है। शुक्रवार को आए आंकड़ों में दूसरी तिमाही में देश की विकास दर 4.5 फीसदी रही है। इससे केंद्र की बीजेपी सरकार की नीयत और नीति दोनों में खोट उजागर होता है। इसी संदर्भ में शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि अर्थव्यवस्था की कमजोरी जाहिर करती है कि देश में डर का माहौल है। उन्होंने कहा कि सिर्फ नीतियां बदलने से कुछ नहीं होगा, जब तक देश में डर का माहौल खत्म कर भरोसा नहीं जगाया जाएगा अर्थव्यवस्था की हालत नहीं सुधरेगी।

राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्परेरी स्टडीज और समृद्ध भारत फाउंडेशन द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था कॉन्क्लेव (नेशनल इकोनॉमी कॉन्क्लेव) में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि “हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद चिंताजनक है, लेकिन मैं तर्क देना चाहूंगा कि कैसे हमारे समाज की स्थिति अभी भी और चिंताजनक है।” डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि, “आज जारी जीडीपी के आंकड़े 4.5 फीसदी तक पहुंच गई है, यह पूरी तरह अस्वीकार्य है। हमारे देश की उम्मीद 8-9 फीसदी की दर से बढ़ना है। जीडीप का 5 फीसदी से 4.5 प्रतिशत पर आ जाना चिंताजनक है। आर्थिक नीतियों में बदलाव से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद नहीं मिलेगी।“

उन्होंने कहा कि, “हमें अपनी अर्थव्यवस्था 8 फीसदी से ज्यादा की रफ्तार के लिए मौजूदा डर को खत्म कर उसे आत्मविश्वास और भरोसे में बदलने की आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था की स्थिति अपने समाज की स्थिति का प्रतिबिंब है। विश्वास और विश्वास का हमारा सामाजिक ताना-बाना अब फट गया है और टूट गया है।“ उन्होंने कहा कि, “हमारी अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर उद्योग, कृषि, व्यापार, नौकरी, टैक्स, मौद्रिक नीति और वित्तीय नीति आदि से परिभाषित होती है और इसी आधार पर विशेषज्ञ सम्मेलनों में इस पर चर्चा करते हैं। आज कोई ऐसा नहीं मिलेगा जो यह न माने कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में हैं और इसके घातक परिणाम होंगे, खासतौर से युवाओं, गरीबों और किसानों का इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। लेकिन सिर्फ नीतियां बदलने से काम नहीं चलेगा।”

उन्होंने कहा कि, “आज भय का माहौल समाज में सब तरफ दिखता है। बहुत से उद्योगपतियों ने मुझसे कहा कि वे सरकारी अधिकारियों के भय और उत्पीड़न के माहौल में जी रहे हैं। बैंकर्स नए कर्ज देने में हिचकिचा रहे हैं, उद्यमी नए प्रोजेक्ट लगाने में झिझक रहे हैं। अर्थव्यवस्था के नए इंजिन के रूप में सामने आए टेक्नालॉजी आधारित स्टार्टअप लगातार निगरानी और संदेह के शिकार हैं। सरकार के नीति निर्धारक और संस्थाएं सच बोलने में डरते हैं।” मनमोहन सिंह ने कहा कि, “मीडिया, न्यायपालिका, नियामक प्राधिकरण और जांच एजेंसियों पर लोगों का भरोसा कम होता जा रहा है। गहरे अविश्वास, निरंतर भय और निराशावादी भाव हमारे समाज में व्याप्त है और अर्थव्यवस्था पर इसी का असर नजर आ रहा है।”

उन्होंने कहा कि, “समस्या की असली जड़ यह है कि हमारी सरकार हर उद्योगपति, हर बैंकर, हर उद्यमी और हर नागरिक पर शक करती हैं। इससे आर्थिक विकास रुक गया है क्योंकि बैंकों ने कर्ज देने में संकोच करना शुरु कर दिया है, उद्योगपतियों ने निवेश कम कर दिया है और नीति निर्धारकों ने इस बारे में सोचना बंद कर दिया है।” मनमोहन सिंह ने कहा कि, “मोदी सरकार हर किसी को संदेह और अविश्वास के धुंधले चश्मे से देखती है, इसीलिए उसे पिछली सरकार की हर नीति में खोट नजर आता है।”

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