मीडिया मैनेजमेंट और राष्ट्रवाद का झूठा शोर मचाकर भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार लगातार अर्थव्यवस्था से ध्यान भटका कर आर्थिक मोर्चों पर ऐसा हेराफेरी कर रही है जिसके बारे में जनता को पता तक नहीं चल रहा है खासतौर पर बैंकिंग सेक्टर में जिस तरह से लगातार फ्रॉड और कर्ज लेकर देश छोड़ने का परंपरा शुरु हुआ है वह देश की आर्थिक व्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर रहा है इसके बावजूद भी मोदी सरकार इस पर किसी प्रकार की कार्य करने के बजाय लोगों को मीडिया के झूठे शोर और राष्ट्रवाद के ढकोसले नारो के जरिये भ्रमित किए हुए है।
मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को बैंक फ्रॉड के जरिए कई बड़े झटके लगे थे। अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही एक और बड़ा बैंक घोटाला हो गया है। जिसने दो राज्य के लोगों की नींद उड़ा दी है।
पंजाब और महाराष्ट्र को ऑपरेटिव बैंक में तकरीबन 4355 करोड़ के घोटाले का खुलासा हुआ है। यह खुलासा तब हुआ जब खुद आरबीआई ने इस बैंक पर अपनी स्पष्ट नजर रखनी शुरू की। जिसके बाद आरबीआई ने इस बैंक में होने वाले सभी तरह के ट्रांजैक्शन पर रोक लगा दी।
साथ ही इस बात का आदेश दिया कि इस बैंक मैं जिन लोगों के खाते हैं वह 6 महीने में मात्र ₹1000 निकाल सकते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बैंक में तमाम ऐसे लोगों के खाते हैं जिनकी पूरी आय यहीं पर जमा है। ऐसे में वह इस बात को लेकर बेहद परेशान हैं कि सिर्फ 6 माह में ₹1000 से उनके घर का खर्च कैसे चलेगा? दरअसल कोआपरेटिव बैंक में मध्य वर्गीय लोगों के खाते अधिकतर होते हैं क्योंकि यह बैंक की ब्याज दर उपलब्ध करवाती हैं।
पंजाब एवं महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक में हुए इस बड़े घोटाले की खबर बाहर आते ही यहां के उपभोक्ताओं में हड़कंप सा मच गया। सभी लोग अपना पैसा पाने के लिए बैंक शाखाओं के बाहर जमा हुए हैं, हंगामा कर रहे हैं तथा यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि उनका पैसा सुरक्षित है भी या नहीं।
हालांकि प्रवर्तन निदेशालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए बैंक के निलंबित पूर्व एमडी को गिरफ्तार कर लिया है। तथा आगे की कार्यवाही की बात कही गई है। लेकिन महाराष्ट्र एवं पंजाब कोऑपरेटिव बैंक में हुए इस बड़े घोटाले से एक बार फिर से मोदी सरकार पर प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए हैं।
देश के आम लोगों के लिए सबसे भरोसेमंद माने जाने वाली बैंकिंग सेक्टर में जिस तरह से फ्रॉड और घोटाले सामने आ रहे हैं उसके बाद केंद्र सरकार की मंशा पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। खासतौर पर जिससे सरकार इन मुद्दों पर कार्यवाही करने की जगह इन मुद्दों को छुपाने में लगी रहती है उससे सरकार पर और अधिक संदेह उत्पन्न होता है।