
भारतीय राजनीति ही नही बल्कि विश्व राजनीति में महात्मा गांधी और पंडित नेहरू की चर्चा किए बिना राजनीतिक घटनाओं की चर्चा नही की जा सकती है।
बापू और नेहरू जी की रिश्ते में लोकतंत्र की नींव है , काफी मतभेद थे दोनो में मगर दोनो एक दूसरे के सबसे बड़े प्रशंसक थे। बापू को जो जनसमर्थन हासिल था वो जनसमूह नेहरुजी को ही अपना दूसरा नेता मानता था। आज इतिहास को तोड़-मरोड़ कर कोई कुछ भी कह दे मगर इस बात को कोई नही काट सकता कि बापू के बाद नेहरुजी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र के सबसे बड़े निर्माणकर्ता थे। अगर बापू ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का ढांचा बनाया तो नेहरुजी ने उसमे जान दी।
नेताजी बोस बाबू हों या सरदार पटेल जी या फिर उस कार्यकाल के कोई नेता सब बापू और नेहरुजी को ही अपना नेता मानकर काम किया करते थे।
गांधी-नेहरू की विरासत को पूरी तरह समझ पाना आज के समय मे बहुत मुश्किल है पर उनकी विरासत को नही बचाया गया तो भारत का पहचान धूमिल हो जाएगा। भारत के बाहर भारत को किसी ने पहचान दिलाई तो वो नेहरू-गांधी ही हैं।
नेहरू-गांधी के विरासत के सबसे बड़े आलोचक आरएसएस परिवार के प्रचारक भी देश के बाहर इन दो नेताओ के नाम का ही जयकारा लगाते हैं।
मगर एक बात ये भी तय है कि अगर आप गांधीवादी हैं तो आप तभी सफल हो सकते हैं जब आप नेहरूवियन विचारों के साथ काम करें क्योंकि नेहरूवियन और गांधीवाद तभी सफल है जब दोनो एक साथ हो।
आज इस विरासत पर बार बार हमला किया जा रहा है फिर भी ये विश्व भर में अडिग है , इसके जगह कोई भी विरासत होता तो वो दम तोड़ देता।
हमे दूसरे विचारधारा को कॉपी नही करना है बल्कि गांधी-नेहरू विरासत को आगे लेकर चलना है।