
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना में तल्खियां लगातार बढ़ती ही जा रही है। पहले ही सरकार बनाने को लेकर आमने-सामने दिख रही दोनों पार्टियां अब खुलकर एक दूसरे पर हमला कर रही है खासतौर पर शिवसेना एक के बाद एक हमला कर भाजपा को परेशान कर रखा है। शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के जरिए लगातार बीजेपी पर हमलावर है।
शिवसेना ने सामना में लिखे गए एक लेख में भारतीय जनता पार्टी की तुलना हिटलर से करते हुए कहा है कि पांच साल औरों को डर दिखाकर शासन करने वाली टोली आज खुद खौफजदा है। यह उल्टा हमला हुआ है. डराकर भी मार्ग नहीं मिला और समर्थन नहीं मिला, ऐसा जब होता है तब एक बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि हिटलर मर चुका है और गुलामी की छाया हट गई है. पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों को इसके आगे तो निडर होकर काम करना चाहिए. इस परिणाम का यही अर्थ है।
शिवसेना ने सामना में लिखा है कि महाराष्ट्र की सियासत महाराष्ट्र में ही हो. महाराष्ट्र दिल्ली का गुलाम नहीं है. यहां के फैसले यहीं लिए जाने चाहिए.
शिवसेना ने सामना के लेख में लिखा कि, ” चुनाव नतीजे घोषित होने के दूसरे ही दिन पीएम मोदी ने CM फडणवीस की सराहना की. फडणवीस ही दूसरी बार महाराष्ट्र मुख्यमंत्री बनेंगे, ऐसा आशीर्वाद दिया परंतु 15 दिन बाद भी श्री फडणवीस शपथ नहीं ले सके क्योंकि अमित शाह प्रदेश की घटनाओं से अलिप्त रहे. ‘युति’ की सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना ढलते हुए CM से वार्ता करने को तैयार नहीं है, ये सबसे बड़ी हार है. इसलिए दिल्ली का आशीर्वाद मिलने के बाद भी घोड़े पर बैठने को नहीं मिल सका.
शिवसेना ने लिखा कि अवस्था ऐसी है कि इस बार महाराष्ट्र का CM कौन होगा? ये उद्धव ठाकरे फाइनल करेंगे. प्रदेश के बड़े नेता शरद पवार की भूमिका महत्वपूर्ण सिद्ध होगी तथा कांग्रेस के कई MLA सोनिया गांधी से मिलकर आए. महाराष्ट्र का फैसला महाराष्ट्र को सौंपे, ऐसा उन्होंने भी सोनिया गांधी से कहा. कुछ भी हो लेकिन दोबारा भाजपा का CM न हो, यह महाराष्ट्र का एकमुखी सुर है.
शिवसेना नेता लगातार शरद पवार के भी संपर्क में दिखाई दिए हैं। वहीं शरद पवार ने भी इसको लेकर सोनिया गांधी से चर्चा की साथ ही कांग्रेस के कई नेताओं ने दबी जुबान में भी और खुलकर भी शिवसेना और एनसीपी सरकार बनाने के आसार पर कांग्रेस को बाहर से समर्थन देने की बात कही है।