लोकसभा चुनाव में बिहार के 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली एनडीए गठबंधन में दरार बढ़ता ही चला जा रहा है।
लोकसभा चुनाव के ठीक बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल में शामिल ना होने के बाद से ही बीजेपी और जदयू में दूरी बढ़ती चली जा रही है पहले जहां जदयू ने मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल होने से मना कर दिया वहीं उसके बाद नीतीश कुमार ने अपने कैबिनेट विस्तार में बीजेपी के किसी भी सदस्य को शामिल नहीं किया और सभी मंत्री जदयू कोटे से ही बना दिए।
इसके बाद गिरिराज सिंह के कई बयान से नीतीश की जदयू और भाजपा में एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते हुए प्रवक्ता देखे गए। आर एस एस की जासूसी को लेकर आई चिट्ठी के बाद यह दरार और बढ़ता ही चला जा रहा है माना जा रहा है जहां भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ 2020 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए विकल्पों पर चर्चा कर रही है।
तो वहीं जदयू भी बीजेपी को झटका देने के लिए तैयार है वह कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के साथ 2020 की चुनाव की तैयारी में लग गई है माना जा रहा है जदयू के कुछ नेताओं का कांग्रेस के कुछ नेताओं से लगातार सम्पर्क जारी है।
इन सबके बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दिकी से मुलाकात करना भी चर्चा का विषय बना हुआ है और साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा के द्वारा नीतीश कुमार का बचाव करना भी कहीं ना कहीं बिहार में सियासी हवा के बदलने का संकेत है।
इससे पहले भी नीतीश कुमार राजद और कांग्रेस के साथ सरकार चला चुके हैं और जिस तरह से कांग्रेस के नेता नीतीश कुमार के लिए नरम दिख रहे हैं और नीतीश कुमार राजद के नेता से मुलाकात कर रहे हैं उसके बाद इस बात को लेकर चर्चा फिर शुरू हो गया है कि क्या बिहार में फिर एक बार सियासी हवा बदलेगी और क्या भारतीय जनता पार्टी की विदाई बिहार सरकार से होगी और कांग्रेस राजद बिहार की सरकार में शामिल होगी।