नागरिक संशोधन बिल पर पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी की राय मनमर्जी करने वाली सरकार अगले चुनाव मे नकार दी जाती हैं

नागरिकता संशोधन कानून पर दुनिया भर में सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी दल, बुद्धिजीवी और छात्र सभी इसे संविधान के खिलाफ बता रहे हैं। इस कानून को अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया जा रहा है। इस पर देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि यह सवाल आज हम सभी और मीडिया के सामने है कि हम विविध विचारों को सुनें या फिर पार्शियन की तरह अपने राष्ट्रहित को थोपें। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि बहुमत का मतबल मनमानी करना नहीं होता बल्कि सबको साथ लेकर चलना होता है। उन्होंने कहा कि जनता किसी की भी मनमर्जी को ज्यादा दिन तक चलने नहीं देती है। ऐसी पार्टी जो मनमर्जी करती है उसे जनता अगले चुनाव में नकार देती है। प्रणव मुखर्जी इंडिया पाउंडेशन द्वारा आयोजित द्वितीय अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान दे रहे थे। इसी दौरान उन्होंने ये बातें कही।

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि अनेकता में एकता ही भारत का मूल मंत्र है। इसके महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि, “हमें यह याद रखना चाहिए कि अगर हम अपने अलावा दूसरों की आवाज सुनना बंद आर देंगे तो लोकतंत्र हार जाएगा।” एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत की 13 अरब लोगों की आबादी सात प्रमुख धर्मों का पालन करती है और 122 भाषाओं और 1,600 बोलियों का उपयोग करती है, और फिर भी एक संविधान के तहत रहती है, एक प्रणाली और साथ एक पहचान के साथ। यही भारत है। यह पहचान, कभी भी नष्ट नहीं की जा सकती न ही कभी भी हम इसे नष्ट होने देंगे और अगर हम इसे नष्ट कर देते हैं, तो भारत के रूप में जाना जाने वाला कुछ भी नहीं रहेगा।

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