बिहार चुनाव और कांग्रेस की रणनीति: “मोदी सरकार की उलटी गिनती यहीं से शुरू होगी”

भारतीय राजनीति में चुनाव सिर्फ सत्ता बदलने की प्रक्रिया नहीं होते, बल्कि जनता के मूड, सामाजिक समीकरण और आने वाले वर्षों की दिशा तय करने वाले पर्व भी होते हैं। इस बार बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है। पार्टी का दावा है कि “मोदी सरकार की उलटी गिनती बिहार से शुरू होगी।”

यह बयान सिर्फ एक चुनावी नारा नहीं है, बल्कि कांग्रेस की रणनीतिक सोच और भविष्य की राजनीति का संकेत है। आइए समझते हैं कि यह कथन क्यों महत्वपूर्ण है और इसके निहितार्थ क्या हो सकते हैं।

कांग्रेस का हमला — राजनीति में नया संदेश

कांग्रेस ने यह कहकर स्पष्ट कर दिया कि वह अब सिर्फ सहयोगी की भूमिका में नहीं, बल्कि भाजपा के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है।

मोदी सरकार पर सीधा निशाना: कांग्रेस ने बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्या और लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोर पड़ती स्थिति को मुद्दा बनाया।

बिहार से शुरुआत: यह कहना कि मोदी सरकार की उलटी गिनती बिहार से शुरू होगी, साफ दर्शाता है कि कांग्रेस बिहार चुनाव को “राष्ट्रीय राजनीति” के मंच की तरह इस्तेमाल करना चाहती है।

कार्यकर्ताओं में जोश भरना: इस बयान का लक्ष्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाना है कि वे सिर्फ राज्य में नहीं, बल्कि देश की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

क्यों बिहार?

यह सवाल स्वाभाविक है कि कांग्रेस ने “मोदी सरकार की उलटी गिनती” की शुरुआत के लिए बिहार का नाम क्यों लिया।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बिहार हमेशा से भारतीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। चाहे जेपी आंदोलन हो, मंडल राजनीति हो या महागठबंधन का प्रयोग—बिहार से उठी लहरों ने दिल्ली की सत्ता को हिला दिया है।

2. गठबंधन की मजबूती
कांग्रेस यहाँ राजद और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन में है। इस गठबंधन ने 2015 में भाजपा को सत्ता से दूर रखा था। कांग्रेस इसी इतिहास को दोहराना चाहती है।

3. युवाओं की बेचैनी
बिहार देश का सबसे युवा राज्य है। यहाँ बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा व्यवस्था की कमजोरियाँ सबसे बड़ा मुद्दा हैं। कांग्रेस मानती है कि इन सवालों पर वह भाजपा को घेर सकती है।

कांग्रेस का नैरेटिव

कांग्रेस का पूरा नैरेटिव तीन मुख्य बिंदुओं पर खड़ा है:

रोज़गार और शिक्षा: पार्टी का कहना है कि भाजपा सरकार ने युवाओं को ठगा है। बिहार में लाखों युवा नौकरी की तलाश में बाहर जाते हैं, लेकिन केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें नाकाम रही हैं।

लोकतंत्र और संविधान: कांग्रेस भाजपा पर यह आरोप लगा रही है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया गया है और सत्ता के केंद्रीकरण से जनता का भरोसा टूटा है।

महंगाई और किसान: पेट्रोल, डीज़ल, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ किसान संकट भी कांग्रेस के निशाने पर है।

भाजपा के लिए चुनौती

कांग्रेस का यह आक्रामक रुख भाजपा के लिए कई मायनों में चुनौती है।

1. गठबंधन की ताकत: भाजपा जानती है कि अगर कांग्रेस-राजद-वाम दल साथ मिलकर मजबूत अभियान चलाते हैं, तो मुकाबला कठिन हो सकता है।

2. नैरेटिव सेट करना: कांग्रेस ने सीधे मोदी सरकार को निशाने पर लेकर यह दिखाया कि चुनाव सिर्फ राज्य स्तर का नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की नीतियों पर जनमत संग्रह भी है।

3. गांधी परिवार की अपील: राहुल गांधी और सोनिया गांधी के नेतृत्व को कांग्रेस कार्यकर्ता मैदान में भुनाने की कोशिश करेंगे।

जनता के लिए क्या मायने?

आवाज़ उठाने का मौका: जनता को महसूस होगा कि उनकी रोज़मर्रा की समस्याएँ—बेरोजगारी, पलायन, महंगाई—राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन रही हैं।

केंद्र बनाम राज्य का सवाल: यह चुनाव केवल नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव की नहीं, बल्कि मोदी सरकार की नीतियों पर भी सवाल खड़े करेगा।

युवा शक्ति का प्रभाव: अगर कांग्रेस का नैरेटिव युवाओं को आकर्षित करता है, तो इसका असर वोट प्रतिशत पर साफ दिख सकता है।

चुनौतियाँ कांग्रेस के सामने भी

हालाँकि कांग्रेस के लिए यह राह आसान नहीं है।

संगठनात्मक कमजोरी: बिहार में कांग्रेस का संगठन उतना मजबूत नहीं है जितना भाजपा या राजद का है।

स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दे: जनता स्थानीय नेतृत्व पर ज़्यादा भरोसा करती है। कांग्रेस को चाहिए कि वह स्थानीय नेताओं को भी बराबर का महत्व दे।

भाजपा का मजबूत प्रचार तंत्र: भाजपा की चुनावी मशीनरी संसाधनों और प्रचार दोनों में भारी पड़ सकती है।

निष्कर्ष

कांग्रेस का बयान कि “मोदी सरकार की उलटी गिनती बिहार से शुरू होगी” एक राजनीतिक घोषणा से कहीं अधिक है। यह विपक्ष की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बिहार को केंद्र में रखकर राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है।

अगर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जनता की समस्याओं को सही ढंग से उठाते हैं और संगठनात्मक स्तर पर एकजुट रहते हैं, तो यह नारा सिर्फ चुनावी जुमला नहीं रहेगा, बल्कि आने वाले राष्ट्रीय चुनावों के लिए नई दिशा तय कर सकता है।

बिहार हमेशा से राजनीतिक क्रांतियों की भूमि रहा है। अब देखना यह है कि क्या इस बार कांग्रेस का यह दावा सच साबित होगा और मोदी सरकार की उलटी गिनती वाकई यहीं से शुरू होगी।

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