IIT कानपुर में जिस नज्म पर विवाद हुआ , जाने वो क्या है ?

आईआईटी के छात्र ना सिर्फ देश में बल्कि विश्व भर में अपने शिक्षण संस्था के साथ-साथ भारत को गौरवान्वित करने का काम करते हैं मगर इसी संस्था के छात्रों को धर्मद्रोही और देशद्रोही का ठप्पा आईआईटी कानपुर प्रशासन लगा रहा है कारण है एक नज्म को गाने को लेकर जो न जाने कितने प्रदर्शन में गाया गया है। यह नजम पाकिस्तानी गायक फैज अहमद फैज के द्वारा गाया गया है

आइये आप खुद देखिये इस नज्म के लाइन में क्या सही और क्या गलत है

”हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उठोगा अनल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो”

यह नज्म 17 दिसंबर 2019 को IIT कानपुर के कैंपस में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हुई कार्रवाई को लेकर विरोध प्रदर्शन में गाया गया था जिसके बाद प्रशासन ने ये कारवाई की।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here