बीजेपी ने महाराष्ट्र में इस बार अपने नेताओं के जगह दलबदलू नेताओ पर अधिक भरोसा व्यक्त किया है। बीजेपी ने इस चुनाव में दलबदलुओं के लिए पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को झटका दे दिया है और साथ ही बीजेपी ने प्रदेश में अपने कामो के कारण आलोचना झेल रहे नेताओ का टिकट काट कर उनके परिवारों को टिकट दे दिया है।
नामांकन भरने के अंतिम दिन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने कुछ वर्तमान और पूर्व मंत्रियों को टिकट नहीं देकर जोरदार झटका दिया है।
पार्टी की जारी चौथी सूची में भी शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े, ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले और मंत्री का दर्जा प्राप्त राज पुरोहित का नाम शामिल नहीं था।
इसके अलावा, दो पूर्व मंत्री, कभी सरकार में एक तरह से नंबर दो की हैसियत रखने वाले एकनाथ खडसे और वरिष्ठ नेता प्रकाश मेहता को भी टिकट नहीं दिया गया है। तावड़े, पुरोहित और मेहता मुंबई भाजपा इकाई के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
मेहता स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर घाटकोपर पूर्व सीट से भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार पराग शाह के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं।
उनके समर्थकों ने नामांकन के लिए जाते वक्त पराग शाह की कार पर हमला कर अपना गुस्सा जाहिर किया और वहीं मेहता उन्हें शांत करते दिखे।
खडसे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से हाथ मिलाने ही वाले थे कि उनकी बेटी रोहिणी खडसे को मुक्ताईनगर विधानसभा सीट से भाजपा ने टिकट दे दिया, जिसके बाद उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए।
उन्होंने पार्टी के इस फैसले का स्वागत किया और आश्वासन दिया कि वह पार्टी के निर्णयों का पालन करेंगे और उम्मीदवारों को जिताने के लिए काम करेंगे क्योंकि उनके पास राजनीति का 40 वर्ष का अनुभव है।
तावड़े के पार्टी कार्यालय के चक्कर लगाने के बावजूद उनकी बोरिवली की सीट को सुनील राणे को दे दिया गया, जबकि कोलाबा सीट से पूर्व मंत्री पुरोहित के स्थान पर राहुल नार्वेकर को उम्मीदवार बनाया गया है।
कयास लगाए जा रहे थे कि बावनकुले को उनके मजबूत गढ़ कैम्पटी (नागपुर) से हटाकर किसी दूसरी सीट पर भेजा जाएगा, लेकिन पार्टी ने अंतिम समय में उनकी पत्नी ज्योति को टिकट दे दिया।
वहीं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के निजी सहायक अभिमन्यु पवार को औसा (लातूर) से टिकट दिया गया है।
बीजेपी ने चुनाव ऐलान से पहले कई दलों के नेताओं को अपने दल में शामिल किया था और साथ ही सरकार के 5 साल के कार्यकाल के दौरान कई ऐसे मंत्री थे जिनका प्रदेश में काफी विरोध हुआ था और कई ऐसे विधायक भी थे जिनका कामकाज काफी खराब था उन्हें भी टिकट नहीं मिला है लेकिन सवाल उठता है कि क्या चेहरा बदल देने से जनता का गुस्सा और काम ना होने का जो दर्द है वह कम हो जाएगा।